चाची बरामदा पार करने लगीं तो आंगन में गेहूं साफ करती अवनी पर दृष्टि ठहर गई. कमाल है यह लड़की भी. धूप में, पानी में कहीं भी बैठा दो, चुपचाप बैठी काम पूरा करती रहेगी.
सुबह उस के हाथों से गिर कर चायदानी टूट गई थी. उसी के दंडस्वरूप चाची ने अवनी को धूप में गेहूं बीनने का आदेश दिया था.
सुबह की धूप अब धीरेधीरे पूरे आंगन को अपनी बांहों में घेरती जा रही थी. चाची ने देखा, अवनी का गोरा रंग धूप की हलकी तपिश में और भी चमक रहा था. मन ने कहा, ‘श्रावणी, तू इतनी निर्दयी क्यों बन गई?’ पर उत्तर उस के पास नहीं था.
जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी, तब जेठानी मानसी के रूपरंग को देख धक रह गई थी. वह उन के आसपास भी कहीं नहीं ठहरती थी. मानसी जीजी ने प्यार से उसे बांहों में भर लिया था और एकांत होते ही बोली थीं, ‘‘हमारी कोई छोटी बहन नहीं है, बस 2 भाई हैं, तुम हमारी बहन बनोगी न?’’
वह मुसकरा कर आश्वस्त हो गई थी. जिसे अपने रूप का तनिक भी गर्व नहीं उस से भला कैसा डरना? पर सब कुछ वैसा ही नहीं होता है, जैसा व्यक्ति सोचता है. प्राय: किसी भी काम से पहले सास का स्वर उसे आहत कर देता, ‘‘श्रावणी बेटा, जरा मानसी से भी पूछ लेना कि भरवां टिंडे कैसे बनेंगे. पूरब को अभी तक अपनी भाभी के हाथों के स्वाद की आदत पड़ी है.’’
उस का तनमन सुलग उठता. कैसे प्यार भरी चाशनी में लपेट कर सास ने उसे जता दिया था कि अभी तुम रसोई में कच्ची हो.