आज कौमेडी में क्या बदलाव आए हैं?
आज कौमेडी के नाम पर डबल मीनिंग्स बहुत आ गए हैं. पहले रीयल कौमेडी थी अब सिर्फ दूसरे की बेइज्जती करने को कौमेडी कहते हैं. पहले स्टैंडअप कौमेडियन के लिए चैनलों की इतनी बंदिशें नहीं थीं, जितनी आज है. आज हर चैनल की तरफ से गाइडलाइन जारी होती है कि कम्यूनिटी, कास्ट, रिलीजियन कमैंट नहीं कर सकते. पौलिटिक्स और पौलिटिशियन पर स्टेटमेंट नहीं दे सकते. जहां इतनी सारी बंदिशें हों वहां क्रिएटिविटी कहां रह जाती है.
श्याम रंगीला के साथ जो हुआ वह सही है?
पहले लालू प्रसादजी का शेखर सुमन ने कितना मजाक उड़ाया, राजू श्रीवास्तव सभी राजनेताओं की मिमिक्री करते थे, लेकिन आज वह समय नहीं है. श्याम रंगीला ने मोदीजी की मिमिक्री की तो उसे शो से ही हटा दिया. यह बिलकुल गलत है. कौमेडी करने वाले से आप यह कहेंगे कि इसे इस तरह नहीं मेरी तरह करो तो वह क्या कौमेडी करेगा. मैं मानता हूं कि ऐक्सप्रैशन औफ फ्रीडम होनी चाहिए.
कई स्टैंडअप कौमेडियन सिर्फ वैब तक ही क्यों सीमित रहे?
तन्मय भट्ट, मल्लिका दुआ, जाकिर ये सब एक जोनर के कौमेडियन हैं, जो सिर्फ ऐब्यूज और डबल मीनिंग शब्दों का प्रयोग अपनी कौमेडी में करते हैं. इन के पास इस के अलावा और कुछ नहीं लेकिन टीवी पर काम करना बहुत कठिन है इस में कई तरह की बंदिशें होती हैं. इसलिए कुछ ही कौमेडियन टीवी पर आ पाते हैं.
आप को भी टीवी शो छोड़ना पड़ा था?
मैं ने टीवी पर बहुत काम किया है. ‘कौमेडी बचाओ’ शो के किरदार में मुझे पम्मी आंटी के किरदार का औफर दिया गया था. सिर्फ 4 ऐपिसोड ही एयर हुए थे कि शो की तरफ से खबर आई कि आप को हिंदी में बोलना पड़ेगा पंजाबी सभी को समझ में नहीं आ रही. मेरा कैरेक्टर पम्मी आंटी खालिश पंजाबी कैरेक्टर था. अब मैं कैसे हिंदी में बोलता. इसलिए जब ज्यादा ही रोकटोक मेरे ऊपर हुई तो मैं ने शो छोड़ दिया.