लेखक- उमेश कुमार सिंह
आरामपसंद लाइफस्टाइल और फैटी फूड से दिल के रोगों का ही नहीं, डीप वीन थ्रौंबोसिस यानी डीवीटी का भी खतरा बढ़ रहा है. डीवीटी शरीर की गहराई में खून का थक्का बन जाने को कहते हैं. इस तरह के थक्के पिंडलियों, जांघों, किडनी, दिमाग, आंतों और लिवर में बन सकते हैं. इस खतरे की चपेट में अब बड़ी उम्र के लोग या किसी कारण से चलफिर न पाने वाले ही नहीं, युवा और बच्चे भी आने लगे हैं. कई बार जौइंट रीप्लेसमैंट सर्जरी और गंभीर किस्म के ऐक्सीडैंट के मामलों में की जाने वाली सर्जरी के कारण भी फ्री हुए टिशू फैट में मिल जाते हैं, जो डीवीटी की वजह बनते हैं. वास्तव में डीवीटी का सब से बड़ा जोखिम तब है जब थक्का खून के साथ फेफड़ों तक पहुंच जाता है. यह प्रक्रिया पलमोनरी ऐंबोलिज्म कहलाती है.
और्थोपैडिक्स डा. संजय अग्रवाल का कहना है कि थक्के के फेफड़ों में जाने के समय से ले कर 30 मिनटों के अंदर एक व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है. लगभग 80% डीवीटी के रोगियों में यह पाया गया है कि यह बीमारी कोई लक्षण प्रकट नहीं करती. रोगविशेषज्ञों के लिए भी यह एक गुप्त रोग की तरह है.
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डीवीटी एक जिंदगी भर डराने वाली स्थिति की तरह होती है. कभीकभी इसे इकौनौमी क्लास सिंड्रोम भी कहा जाता है, क्योंकि इस के विकास के साथ ही इस की बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है. जब शरीर की विभिन्न गतिविधियां रुक जाती हैं जैसे लंबी व जटिल हवाईयात्रा के दौरान पैरों का सुन्न पड़ जाना. यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शरीर के किसी भाग में खून जम जाता है. ज्यादातर पैरों की लंबी शिराओं हाथों और कंधों पर ऐसा होता है.