एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सब से ज्यादा मौतें दिल की बीमारियों से होती हैं और जलवायु परिवर्तन से अधिक सर्दी और अधिक गरमी पड़ने पर इस का सीधा असर इंसान के दिल पर पड़ता है. आंकड़ों पर गौर करें तो स्ट्रोक, दिल, कैंसर और सांस की बीमारियों से दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों की हिस्सेदारी दोतिहाई है.

अधिक गरमी को सहने की होती है क्षमता

इस बारे में नवी मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल के कंसलटैंट कार्डियोलौजी डा. महेश घोगरे कहते हैं कि हमारे शरीर में अपने तापमान को नियंत्रित करने की प्राकृतिक क्षमता होती है. इस प्रक्रिया को थर्मोरैग्युलेशन कहा जाता है, जिसे हाइपोथैलेमस द्वारा नियंत्रित किया जाता है, मस्तिष्क का एक हिस्सा आंतरिक शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए थर्मोस्टेट के रूप में लगातार कार्य करता है.

व्यायाम या गरमी आदि के कारण जब शरीर का तापमान बढ़ जाता है तब हाइपोथैलेमस, पसीना और वासोडिलेशन या रक्तवाहिकाओं को चौड़ा कर के गरमी को बाहर निकालता है और शरीर को ठंडा करता है. ठंड के मौसम में जब शरीर का तापमान गिर जाता है तो हाइपोथैलेमस शरीर में गरमी को बचाने और शरीर को गरम करने के लिए शिवरिंग को ट्रिगर करता है और रक्तवाहिकाओं को संकुचित करता है. यह स्वचालित प्रक्रिया शरीर के एक स्थिर कोर तापमान को बनाए रखने में मदद करती है और यह सुनिश्चित करती है कि शरीर के अंग और प्रणालियां ठीक से काम करें.

तापमान का पड़ता है असर

डाक्टर आगे कहते है कि तापमान में अचानक बदलाव हृदय पर दबाव डाल सकता है. अत्यधिक तापमान में शरीर ठंडा या गर्म करने के लिए रक्त प्रवाह को त्वचा की ओर मोड़ा जाता है. इस से रक्त वाहिकाएं फैल या सिकुड़ जाती हैं, जिस से हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर, गर्म मौसम में, शरीर को ठंडा करने के लिए त्वचा में रक्त पंप करने के लिए हृदय को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिस से हृदय की गति और रक्तचाप बढ़ता है.

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