संसद में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का मामला बेशक अब तक अधर में लटका हुआ हो, लेकिन महिलाओं की बढ़ती प्रतिभा के चलते अन्य क्षेत्रों में इस एकतिहाई आरक्षण की कवायद जारी है. खासकर कारपोरेट जगत, जहां महिलाओं ने अपनी काबिलीयत को बतौर एक शक्ति सिद्ध किया है और इस को पहचान कर ही कारपोरेट जगत महिलाओं के लिए बढ़त बनाने की कवायद में लगा हुआ है. यह राजनीति की तरह कथनी और करनी का अंतर नहीं बल्कि महिलाओं की प्रतिभाओं को भुनाने की कोशिश है.
अमेरिकन एक्सप्रेस कहता है कि जौब इंटरव्यू में कम से कम एकतिहाई संख्या महिलाओं की होनी चाहिए जबकि भारती समूह इंटरव्यू में 25 से 30 प्रतिशत महिलाआें को शामिल करता है. इसी तरह बैक्सटर एशिया पैसिफिक इंक की एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए योजना बिल्ंिडग टैलेंट ऐज के अंतर्गत कंपनी ने मैनेजमेंट व महत्त्वपूर्ण पदों पर 2010 तक पुरुष व महिलाकर्मियों का 50:50 का लक्ष्य बनाया था, जिसे 2008 में ही पूरा किया जा चुका है.
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बैक्सटर इंटरनेशनल इंक, एशिया प्रशांत क्षेत्र के अध्यक्ष एवं कारपोरेट वाइस प्रेसिडेंट जेराल्ड लेमा का कहना है, ‘‘पुरुष व महिलाओं को बराबर संख्या में शामिल करना मात्र सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सभी संगठनों के सामने खड़ी एक अहम चुनौती का हल है. चुनौती यह कि किस आधार पर यह अनुपात तैयार किया जाए? और इस का एकमात्र हल है प्रतिभा. गहन अध्ययन और हमारा खुद का अनुभव यह कहता है कि जो संगठन बेहतर प्रतिभाओं को स्वीकार करता है, वह विकसित होता है, आगे बढ़ता है.’’
बात चाहे स्थिरता की हो या तुरंत सीखने की, किसी भी माहौल में ढल जाने की हो या आपसी रवैए की, संप्रेषण की हो या अभिव्यक्ति की, महिलाओं में ये सभी गुण उन्हें कारपोरेट जगत की ऊंची सीढि़यां चढ़ने के काबिल बनाते हैं. यही कारण है कि महिलाओं ने कारपोरेट जगत में अपनी पैठ बना ली है. फिर वह चाहे पेप्सी की सीईओ इंदिरा नुई हो या जैव प्रौद्योगिकी की मशहूर उद्यमी किरण मजूमदार, जो 10 हजार रुपए की पूंजी से व्यवसाय शुरू कर भारत की सब से अमीर महिला बनीं. 2004 में किरण मजूमदार की कुल संपदा करीब 2,100 करोड़ रुपए आंकी गई थी. किरण मजूमदार का कहना है, ‘‘मेरा मानना है कि महिलाओं में संवेदनशीलता, धीरज, बहुमुखी प्रतिभा और एक आंतरिक शक्ति होती है जो उन की प्रगति में मददगार साबित होती है.’’