लिव इन रिलेशन में रह रहे पार्टनर की हत्या और खुदकुशी के नएनए मामले रोज सामने आ रहे हैं. ऐसे में इन रिश्तों को ले कर फिर से उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं. अहम सवाल यह है कि पश्चिम की इस परंपरा को तो हम ने स्वीकार कर लिया, लेकिन क्या हम अपनी पारंपरिक और दकियानूसी सोच से बाहर निकल पाए हैं. इन तमाम मामलों पर गौर करें तो यही बात सामने आती है कि हम इस नए मौडल के साथ खुद को एडजस्ट करने में नाकाम साबित हुए हैं. यहां हम लिव इन सिस्टम पर कोई सवाल खड़े नहीं कर रहे हैं. इस की अपनी खूबियां और खामियां हैं, लेकिन जो भी मामले सामने आ रहे हैं उस से यही पता चलता है कि या तो हम पूरी तरह से इस सिस्टम को समझ ही नहीं पाए हैं या फिर इस के हिसाब से खुद को ढाल नहीं पाए हैं.
1. बढ़ रहा है रिश्ते का ग्राफ
एक स्त्री और पुरुष का बिना विवाह किए आपसी रजामंदी से एकसाथ रहने के रिश्ते को लिव इन रिलेशन कहते हैं. इस में एकसाथ रहने की कोई सामाजिक या आर्थिक मजबूरी नहीं होती और न ही कोई दबाव.
युवकयुवतियां सोचसमझ कर साथसाथ रहते हैं और जब चाहें अलग हो सकते हैं. कुछ समय पहले तक सोसायटी के लिए यह एक बड़ा सवाल था, लेकिन आज एक तरह से इस रिश्ते को कुछ हद तक शहरी समाज स्वीकार कर चुका है. महानगरों में यूथ ने लिव इन कल्चर को तेजी से अपना लिया है.
युवाओं ने अपनी सहूलत को ध्यान में रख ऐसे रिश्तों की ओर तेजी से कदम बढ़ाया. इस तेज रफ्तार जिंदगी में संतुलन बनाए रखने और कैरियर में आगे बढ़ने के लिए युवाओं को लिव इन रिलेशनशिप बिना बंधन के आसान रास्ता नजर आता है. यही वजह है कि ऐसे रिश्तों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है.