बदलती सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों ने लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है. आधुनिकता के इस युग में ऐसी सभी सामाजिक मान्यताएं जो व्यक्ति की इच्छाओं और हितों के खिलाफ हैं, अपना औचित्य खो चुकी हैं. बदलावों की इस सूची में विवाह की प्रक्रिया को भी शामिल किया जा चुका है. जहां पहले मातापिता ही अपनी संतान के लिए हमसफर चुनते थे, वहीं अब जीवनसाथी का चुनाव युवा खुद करने लगे हैं.
प्यार के नशे में चूर युवाओं को अपने साथी के साथ के अलावा कुछ नहीं सूझता. अपने रिश्ते पर सामाजिक मुहर लगवाने के लिए शादी के बंधन में युवा बंध तो जाते हैं, लेकिन प्यार का हैंगओवर तब उतर जाता है जब पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं से सामना होता है.
इस स्थिति में कई बार रिश्ते टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं. ऐसा ही हुआ दिल्ली की दिव्या के साथ. वह अपने प्रेमी अमित को पति के रूप में पा कर बेहद खुश थी. दिव्या का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत था, लेकिन अमित अपने घर में इकलौता कमाने वाला था. अत: मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ छोटे भाई की पढ़ाईलिखाई का खर्च भी उसे ही उठाना पड़ता था.
पहले से अमित के परिवार की आर्थिक स्थिति से अवगत दिव्या को उस के जिम्मेदाराना स्वभाव ने ही आकर्षित किया था. लेकिन यह आकर्षण तब फीका पड़ने लगा जब दिव्या को ससुराल जा कर घरेलू कामकाज में खटना पड़ा. आमदनी अच्छी होने के बावजूद अमित दिव्या को नौकरचाकर की सुविधा उपलब्ध नहीं करा सकता था, क्योंकि उस की सैलरी का आधे से अधिक हिस्सा घर की ही जिम्मेदारियों को पूरा करने में खर्च हो जाता था.