अभी भी सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं पूरी दुनिया में आधे से ज्यादा दफ्तर बंद हैं, जो दफ्तर खुले भी हैं, वहां भी आधी अधूरी उपस्थिति ही है. महीनों से लाखों करोड़ों लोग जिन्हें कभी हफ्ते में भी छुट्टी लेने की इजाजत नहीं थी, घरों में कैद हैं. पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर लोग या तो ‘वर्क फ्राम होम’ कर रहे हैं या फिर बिना वेतन की छुट्टी का दंश झेल रहे हैं. शायद इसलिए भी लोगों को अपने दफ्तरों की बहुत याद आ रही है. लेकिन एक और वजह है दफ्तरों को मिस करने की. दरअसल घर में रहने के दौरान बहुत से लोगों ने अपने दफ्तर के दौरान के व्यवहार पर मनन किया है और पाया है कि शायद उनका अपने सहकर्मियों से अच्छा व्यवहार नहीं था. इसलिए तमाम ऐसे लोगों ने मन ही मन यह संकल्प लिया है कि नये सिरे से जब दफ्तर अपनी पूरी क्षमता से खुलने शुरु होंगे तो उनका अपने सहकर्मियों के साथ व्यवहार अब पहले से भिन्न होगा.
यह कहने की जरूरत नहीं है कि दफ्तर की पाॅलिटिक्स पूरी दुनिया में होती है. शायद ये इंसानी स्वभाव है. लेकिन लंबे समय तक दफ्तर से दूर रहने के कारण अब ज्यादातर लोग यही कामना कर रहे हैं कि दफ्तर जल्दी से जल्दी खुलें और फिर से वे अपनी दफ्तरी जिंदगी को एंज्वाॅय करें. लंबे समय तक घर में रहने के बाद और अपनी अब तक की दफ्तरी जिंदगी पर मनन करने के बाद अब ज्यादातर लोगों ने यह सोचा है कि जब फिर से दफ्तर खुलेंगे तो अपने सहकर्मियों के प्रति उनका व्यवहार पहले से भिन्न होगा. एक अकेले हिंदुस्तान में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोगों की अपने दफ्तर के लोगों से नहीं पटती है. पब्लिक डीलिंग दफ्तरों के ऐसे कर्मचारी जो ग्राहकों के बीच बड़े लोकप्रिय होते हैं, कई बार उनका भी अपने सहकर्मियों के साथ अच्छा रिश्ता नहीं रहता.