उपचुनावों में राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में पिटाई होने के बाद भारतीय जनता पार्टी सरकार को समझ आया है कि घरों को लूटना महंगा पड़ सकता है और परिणामों के अगले दिन ही पैट्रोल व डीजल के दाम घटा दिए गए हैं. यह कटौती कोई संतोषजनक नहीं है पर साबित करती है कि सरकार को अब भरोसा हो गया है कि राममंदिर और ङ्क्षहदूमुस्लिम कर के वे ज्यादा दिन तक घरों को बहलफुसला नहीं सकते.

धर्म के नाम पर लूट तो सदियों से चली आ रही है पर पहले राजा पहले अपने पराक्रम से शासन शुरू करता था और फिर अपना मनचाहा धर्म जनता पर थोपता था. आज धम्र का नाम लेकर शासन हथियाना जा रहा है और समझा जा रहा है कि मूर्ख जनता को सिर्फ पाखंड, पूजापाठ, मंदिर और विधर्मी का भय दिखाना ही सरकार का काम है. सरकार बड़ेबड़े मंदिर और भवन बना ले जिन में चाहे काल्पनिक देवीदेवता बैठें या हाड़मांस के चुनकर आए नेता, जनता खुश रहेगी.

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आम घरों से निकला छीनने की पूरी तैयारी हो रही है. नोटबंदी के दिनों से जो देश की अर्थव्यवस्था का सत्यानाथ किया जाना शुरू किया है, वह आज भी चल रहा है और बेरहमी से जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने अकाल के दिनों में लगाम वसूला था, आज की सरकार कोविड की मार खाए व्यापार को पैट्रोल व डीजल के दाम हर दूसरे दिन बढ़ा कर कर रही है. चुनावों में मार खाए पर समझ आया कि यह भारी पड़ सकता है.

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