आज सुबहसुबह मौर्निंग वाक पर जाते समय सामने वाली भाभीजी से लिफ्ट में मुलाकात हो गई. आमतौर पर 9 बजे तक सोई रहने वाली सासबहू को इतनी सुबहसुबह सजाधजा देख कर मैं चौंक गई और बोली, ‘‘अरे, आज इतनी सुबहसुबह कहां चल दीं आप दोनों?’’
‘‘आज शीतला सतमी है न तो उसी की पूजा करने पास के मंदिर में जा रहे हैं,’’ अपने हाथों में पूजा के थाल की ओर इशारा कर के वे बोलीं और फिर वे दोनों तो कार में बैठ कर पूजा करने चली गईं पर मैं सोच में पढ़ गई कि आज के समय में भी ये पढ़ीलिखीं महिलाएं चेचक जैसी बीमारी के प्रकोप से बचने के लिए शीतला सप्तमी की पूजा कर के पूरा दिन 1 दिन पूर्व बना बासा खाना खा रही हैं.
इसी प्रकार का एक व्रत होता है वट सावित्री का जिस में महिलाएं यमदूत से भी लड़ कर मृत्यु लोक से अपने पति को वापस ले आने वाली सावित्री देवी की पूजा वरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर करती हैं. इस दिन वे सभी युवा मौडर्न महिलाएं जो कभी लोअरटीशर्ट और जींसटौप के अलावा अन्य किसी परिधान में नजर नहीं आतीं वे सभी सिंदूर से लंबीलंबी मांग भर, हाथों में भरभर चूडि़यां और साड़ी पहने सोलहशृंगार में नजर आती हैं.
घरेलू अंधविश्वास
आगरा शहर के जानेमाने सर्जन की 35 वर्षीय पत्नी सुमेधा पब्लिक स्कूल में प्रिंसिपल है. हरतालिका व्रत में अपने घर की पूजा का सुखद बयां करते हुए वे कहती है ‘‘अपार्टमैंट की सभी महिलाएं हमारे घर पर ही एकसाथ पूजा करतीं हैं. निर्जल व्रत करने से शरीर रात्रि तक जबाब दे देता है. चूंकि रात्रि जागरण करना इस पूजा में अनिवार्य है इसलिए हम सभी मिल कर भजन करते हैं जिस से जागरण काफी आसान हो जाता है.’’