दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कालेज की छात्रा गुरमेहर कौर की दिलेरी की तारीफ करनी होगी. उस ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को चुनौती दे कर साबित कर दिया है कि 20 वर्षीय अनजान युवती भी कट्टर, हिंसक, कानून की परवाह न करने वाले शासकों से नहीं डरती जबकि बड़ेबड़े उद्योगपति, ऊंचे ओहदों पर बैठे अफसर, समाचारपत्रों के मालिक, लेखक, विचारक, छोटे दलों के नेता सरकार से डर कर दुबक जाते हैं.
यह दूसरी बात है कि गुरमेहर कौर अंतत: डर सी गई और फेसबुक व सोशल मीडिया पर अपना वीडियो वापस लेते हुए ट्वीट कर जालंधर लौट गई. उसे अपने गृहनगर में तंग नहीं किया जाएगा इस की गारंटी नहीं पर उस के पिता कैप्टन मंदीप सिंह का करगिल युद्ध में शहीद होने का कवच उस के काम आया वरना भगवाई ताकतें उसे जिंदा लाश बना देतीं.
हिंदू धर्म की रक्षा करने का अधिकार संवैधानिक अधिकार है पर यही अधिकार दूसरों का भी है कि वे सच को सच कहें. सच को कुचल कर एक छद्म समाज बना कर हलवापूरी और अपने लिए धन व सुविधाओं को जमा करना न तो राजनीतिक अधिकार है और न ही संवैधानिक अधिकार.
यह वही हिंदू धर्म है, जो औरतों की रक्षा न करने पर उन्हें जिंदा जलने को जौहर कह कर उन्हें मरने को उकसाता रहा है. यह वही धर्म है जिस में कैकेयी को खलनायक बना डाला जबकि दशरथ उस के पुत्रों को राज्य के बाहर भेज कर राम का राज्याभिषेक कराना चाह रहे थे. यह वही धर्म है जिस ने कुंती को मजबूर किया कि उसे पति से नहीं औरों से पुत्र पैदा करने पड़े.