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लेखक-अरुण अर्णव खरे

विश्वविद्यालय स्पर्धा हेतु कालेज की बैडमिंटन टीम का सेलैक्शन होना था. 4 नाम तो लगभग तय थे. केवल 2 स्थानों के लिए ही क्वालिफाइंग मुकाबले होने थे और इत्तफाक से शेखर और प्रशांत इन स्थानों के लिए दावेदार थे. शेखर ने ट्रायल मैचों में शानदार प्रदर्शन किया. उस ने टीम के कप्तान को भी हराया और अपना स्थान सुरक्षित कर लिया. दूसरी ओर प्रशांत, कप्तान और सैकंड ईयर के छात्र अविनाश पुरी से हार कर सेलैक्शन की रेस से बाहर हो गया. शेखर उस के हार जाने से दुखी था, पर प्रशांत अपेक्षा के विपरीत शांत था.

3 दिनों बाद ही टीम को स्पर्धा हेतु सीहोर जाना था. उस दिन सभी मैस में नाश्ता करने एकत्र हुए थे. सदा की तरह शेखर और प्रशांत साथ ही बैठे थे. उन्होंने अविनाश को भी पास बैठने के लिए बुला लिया. नाश्ते में उस दिन सांभरबड़ा बने थे. नाश्ता सर्र्व करते समय गादीराम अचानक स्लिप हुआ और खौलते हुए सांभर का बरतन अविनाश के ऊपर जा गिरा. अविनाश के हाथ और जांघों पर फफोले उभर आए. अविनाश टीम के साथ नहीं जा सका. प्रशांत को टीम में जगह मिल गई, लेकिन इस तरह टीम में स्थान पाने को ले कर वह बहुत अपसैट था. शेखर और कप्तान के बहुत समझाने के बाद ही वह नौर्मल हुआ था.

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हमीदिया कालेज के विरुद्ध पहले मैच में पहला सिंगल्स मुकाबला खेलते हुए प्रशांत हार गया. एक लाइनकौल को ले कर वह अंपायर से उलझ गया और उन्हें मां की भद्दी गाली दे बैठा. विश्वविद्यालय की अनुशासन समिति ने प्रशांत को दोषी मानते हुए स्पर्द्धा से बाहर कर दिया. उसे वापस लौटना पड़ा. प्रशांत के इस तरह बाहर जाने से शेखर दुखी था. उस ने उसे सांत्वना देनी चाही तो वह बेरुखी से ‘रहने दो’ कहता हुआ अपना सामान पैक करता रहा.

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