‘‘हैलो विनोद, हाऊ आर यू?’’ प्रत्युत्तर में वैभवी का औपचारिकताभरा संबोधन सुन कर विनोद चौंका. उस ने गौर से सैलफोन की स्क्रीन पर नजर डाली, कहीं गलती से किसी और का नंबर तो प्रैस नहीं कर दिया था. प्यार से विक्की कह कर बुलाने वाली वैभवी उसे अपरिचित या गैर के समान संबोधन कर रही थी.
‘‘विनोद, परसों संडे है, आप पार्क व्यू होटल के ओपन रैस्टोरैंट में आ जाना,’’ कहते हुए वैभवी ने फोन काट दिया.
असमंजस में पड़ा विनोद हाथ में पकड़े सैलफोन को देख रहा था.
पार्क व्यू होटल के रैस्टौंरैंट को एक बड़े तालाब को सुधार कर पिकनिक स्पौट का रूप दिया गया था. कई बार दोनों वहां जा चुके थे.
आमनेसामने बैठ कर चप्पू चलाते किश्ती झील के बीचोंबीच ला कर किश्ती रोक कर विनोद ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है? इतनी सीरियस क्यों हो? तुम्हारा लहजा भी एकदम एब्नौर्मल है?’’
वैभवी ने अपने छोटे वैनिटी पर्स से एक लिफाफा निकाल कर बढ़ाया. एक बड़े अस्पताल का लिफाफा देख कर विनोद चौंका.
उस ने लिफाफा निकाला और उस में रखे कागजों को निकाल कर एक नजर डाली और प्रश्नवाचक नजरों से वैभवी की तरफ देखा.
‘‘विनोद, मु झे कैंसर है. मेरे वक्षस्थल में ट्यूमर है. मैं ब्रेस्ट कैंसर ग्रस्त हूं. आई एम सौरी,’’ कहते हुए वैभवी ने अपना चेहरा झुका लिया. विनोद को ऐसा लगा जैसे किसी ने उस को ऊंची पहाड़ी के शिखर से नीचे की ओर की धक्का दे दिया हो.
वह भौचक्का सा कभी हाथ में पकड़े मैडिकल रिपोर्ट के कागजों को, कभी सामने बैठी अपनी मंगेतर, अपनी भावी पत्नी को देख रहा था. उस ने एक बार फिर सरसरी नजर मैडिकल रिपोर्ट पर डाली और कागज लिफाफे में डाल कर लिफाफा वैभवी की तरफ बढ़ा दिया. दोनों खामोश थे.