फोन की घंटी ने मुझे वर्तमान में ला कर खड़ा कर दिया. देखा तो प्रणय का फोन था. उस ने कहा कि परसों तक वह घर आ जाएगा.
‘‘ठीक है,’’ कह कर मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं और एक लंबी सांस ली.
दूसरे दिन फिर अखिल का फोन आया और इस बार वह मिन्नतें करने लगा कि, बस, एक बार वह मुझ से मिलना चाहता है. इस बार मैं झूठ नहीं बोल पाई और कहीं बाहर ही मिलने को बुला लिया. क्योंकि मुझे भी उसे दिखाना था कि देखो, छोड़ दिया था न तुम ने मुझे मझधार में? लेकिन किसी ने आ कर बचा लिया मुझे डूबने से. लेकिन मैं तो खुद ही उसे देख कर अवाक रह गई क्योंकि पहले वाला अखिल तो वह कहीं से दिख ही नहीं रहा था. अपनी उम्र से कितना अधिक दिखने लगा था वह. बाल आधे से ज्यादा सफेद हो चुके थे. आंखों पर मोटा चश्मा चढ़ चुका था और शरीर इतना जर्जर कि जैसे कुपोषण का शिकार हो गया हो. मुझे भी वह कुछ देर तक निहारता रहा. फिर पूछा, ‘‘कैसी हो, शिखा?’’
पर उस की बातों का कोई जवाब देना मैं ने जरूरी नहीं समझा. सो बोली, ‘‘बोलो, किस कारण मिलना चाहते थे मुझ से?’’
‘‘पूछोगी नहीं कि मैं कैसा हूं?’’ वह बोला.
‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है,’’ बड़े ही रूखे शब्दों में मैं ने जवाब दिया. अच्छा लग रहा था मुझे उस से इस तरह बेरुखी से बातें करना.
फिर कुछ न बोल कर, इशारों से उस ने मुझे बैठने को कहा. फिर कहने लगा, ‘‘मैं जानता हूं शिखा, तुम मेरा चेहरा भी नहीं देखना चाहती होगी. लेकिन फिर भी मेरे बुलाने पर तुम यहां आईं, इस के लिए तहेदिल से शुक्रिया,’’ इतना कह कर उस ने मेरी तरफ देखा. लेकिन मैं अब भी दूसरी तरफ ही देख रही थी, पर सुन रही थी उस की सारी बातें.