घंटी बजने के साथ ही, ‘‘कौन है?’’ भीतर से कर्कश आवाज आई.
‘‘सुमि आई है,’’ दरवाजा खोलने के बाद भैया ने वहीं से जवाब दिया.
‘‘फिर से?’’ भाभी ने पूछा तो सुमि शरम से गड़ गई.
विवेक मन ही मन झुंझला उठा. पत्नी के विरोध भाव को वह बखूबी समझता है. सुमि की दूसरी बार वापसी को वह एक प्रश्नचिह्न मानता है जबकि दीपा इसे अपनी सुखी गृहस्थी पर मंडराता खतरा मानती है. विवेक के स्नेह को वह हिसाब के तराजू पर तौलती है.
चाय पीते समय भी तीनों के बीच मौन पसरा हुआ था.
विवेक की चुप्पी से दीपा भी शांत हो गई लेकिन रात को फिर विवाद छिड़ गया.
‘‘शैलेंद्रजी बातचीत में तो बड़े भले लगते हैं.’’
‘‘ऊपर से इनसान का क्या पता चलता है. नजदीक रहने पर ही उस की असलियत पता चलती है.’’
‘‘मेरा भी यही कहना है. मुझे तो सुमि अच्छी लगती है पर पता नहीं शैलेंद्रजी के लिए कैसी हो. मेरा मतलब है, पत्नी के रूप में वह कैसी है हमें क्या मालूम.’’
सुमि विवेक की लाडली बहन थी. संयोग से इसी शहर में ब्याही गई थी. देखने में सुंदर, कामकाज में सलीकेदार, व्यवहारकुशल, रिश्तेदारों और मित्रों में खासी लोकप्रिय सुमि के बारे में वह गलत बात सोच भी नहीं सकता.
‘‘दीपा, मैं अपनी बहन के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहता. अनैतिकता को किसी भी वजह का जामा पहना कर जायज नहीं ठहराया जा सकता.’’
भैयाभाभी के बीच बातचीत के कुछ अंश सुमि के कानों में भी पड़े. उस की आंखें भर आईं.
भाभी पहले ऐसी तो नहीं थीं. मां सब से बड़े भैया के पास जयपुर में रहती थीं. पिछले 2 वर्ष से वह विवेक भैया के पास ही रह कर अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर रही थी. तब भी उन्होंने उसे मां का स्नेह दिया था. हालात के साथ व्यक्ति का व्यवहार भी बदल जाता है.