2 माह ऐसे ही बीत गए. वासन ने उसे कभी पत्नी की नजर से नहीं देखा. स्त्रीत्व का इतना घोर अपमान. लीना सहन नहीं कर पाई थी. उस ने ही पत्नीधर्म निभाने की पहल की थी. लीना को अब जीने के लिए कोई तो आधार चाहिए था. वासन जाने किस मिट्टी का बना था. उस ने लीना की इस पहल को भी बिना किसी भावना के स्वीकार कर लिया था.
जिस दिन लीना को पता लगा कि वह गर्भवती है उस ने वासन को नकार
दिया था. वासन को तो कभी लीना की चिंता थी ही नहीं. उस ने तो अपनी मां को खुश करने के लिए विवाह किया था. उस की मां लीना को गर्भवती जान कर खुश हो गई और उस की देखभाल में जुट गई. समय पर मंगला पैदा हुई.
समय बीतता गया, फिर इसी प्रकार शुभम भी पैदा हुआ. अब दोनों बच्चों की देखभल में लीना ऐसी रमी कि वह वासन की ओर से बिलकुल लापरवा हो गई. वासन के औफिस में जब भी कोई पार्टी होती, वह लीना को ले कर जाता. लीना हमेशा सजधज कर जाती. उस के औफिस में सब लीना से बहुत प्रभावित होते थे. तब वासन को भी बहुत गर्व होता और वह बोलता, ‘आई लव माई फैमिली, आई एम अ फैमिलीमैन.’
राजन का घर में आनाजाना भी शुरू हो गया था. दोनों बचपन के दोस्त थे. शादी के बाद सेल्वी का भी आनाजाना शुरू हो गया था. सेल्वी की शादी की दास्तान तो और भी दुखभरी थी. वे लोग बेंगलुरु में रहते थे. औफिस की ओर से वासन हफ्ते में 2 बार बेंगलुरु जाता था. इन सब के बीच कब सेल्वी और वासन के बीच नजदीकियां बढ़ गईं, लीना नहीं जान पाई.