कुछ कहते न बना वीरेन और नमिता से, वे दोनों अपना सा मुंह ले कर मिस्टर माथुर के घर से निकल आए.माथुर दंपती ने जब अनाथालय से बच्ची को गोद लिया था, तब उन की उम्र 55 साल के आसपास थी, एक बच्ची को गोद लेने की सब से बड़ी वजह थी कि मिस्टर माथुर के भतीजों की नजर उन की संपत्ति पर थी और माथुर दंपती के निःसंतान होने के नाते उन के भतीजे उन की दौलत को जल्दी से जल्दी हासिल कर लेना चाहते थे.
मिस्टर माथुर ने बच्ची को गोद लेने के बाद उस का नाम ‘सिया‘ रखा और उसे खूब प्यारदुलार दिया. उन्होंने सिया के थोड़ा समझदार होते ही उसे ये बात बता दी थी कि सिया के असली मांबाप वे नहीं हैं, बल्कि कोई और हैं और वे लोग उसे अनाथालय से लाए हैं.
इस बात को सिया ने बहुत ही सहजता से लिया और वह माथुर दंपती से ही अपने असली मांबाप की तरह प्यार करती रही.आज माथुर दंपती के इस प्रकार के रूखे व्यवहार से नमिता बुरी तरह टूट गई थी. वह होटल में आ कर फूटफूट कर रोने लगी. वीरेन ने उसे हिम्मत दी, “तुम परेशान मत हो नमिता... मैं माथुर साहब से एक बार और मिल कर उन से प्रार्थना करूंगा, उन के सामने अपनी झोली फैलाऊंगा. हो सकता है कि उन्हें दया आ जाए और वे हमारी बेटी से हमें मिलने दें,” वीरेन ने कहा.
अगले दिन वीरेन एक बार फिर मिस्टर माथुर के सामने खड़ा था. उसे देखते ही मिस्टर माथुर अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए बोले, “अरे भाई, क्यों बारबार चले आते हो हमें डिस्टर्ब करने...? क्या कोई और काम नहीं है तुम्हारे पास? हम तुम्हें अपनी बेटी से नहीं मिलवाना चाहते... अब जाओ यहां से?”