वह मुझे ले कर एक कैफे में गए जहां हम ने समोसे के साथ कौफी पी. वहीं उन्होंने मुझे बताया कि जिस दक्षिण भारतीय के घर वह ठहरे हैं वह लखपति आदमी है. मैं घर से बाहर निकला नहीं कि जेब में 200 रुपए जबरन ठूंस देता है.
‘तुम अपने दोस्त से मिलने आए हो?’ उन्होंने पूछा तो मैं ने हां में अपनी गरदन हिला दी.
‘क्या करता है तुम्हारा दोस्त?’
‘बी.एससी. कर रहा है, सर.’
‘उस के मांबाप मालदार हैं?’
‘नहीं, वह विधवा मां का इकलौता बेटा है. मां एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती हैं. फिर मैं ने उन्हें मिसेज दास के बारे में थोड़ाबहुत संक्षेप में बताया. कैफे के बाहर अचानक शर्माजी ने मुझ से पूछा, ‘आज शाम को तुम क्या कर रहे हो?’
‘कुछ खास नहीं.’
‘तुम 9 बजे के आसपास मुझ से शहर में कहीं मिल सकते हो?’
‘पर कहां? यहां तो मैं पहली बार आया हूं.’
वह कुछ सोचते हुए बोले, ‘ऐसा करो, तुम आज मेरा इंतजार रात के 9 बजे गुवाहाटी स्टेशन के पुल पर करना जो सारे प्लेटफार्मों को जोड़ता है. तुम समय से वहां पहुंच जाना क्योंकि मेरे पास शायद तब उतना समय न होगा कि तुम्हारे किसी सवाल का जवाब दे सकूं.’
आशंकाओं की धुंध लिए मैं घर वापस आया. मिसेज दास खाना बना रही थीं. जयशंकर उन की मदद कर रहा था. मुझे देखते ही जयशंकर कहने लगा, ‘अगर तुम आने में थोड़ा और देर करते तो मां मुझे तुम्हारी खोज में भेजने वाली थीं. दोपहर का खाना भी तुम ने नहीं खाया.’
मैं माफी मांग कर हाथमुंह धोने चला गया. मेरे दिमाग में बस, एक ही सवाल कुंडली मारे बैठा था कि मिसेज दास को कौन सी कहानी गढ़ के सुनाऊं ताकि वह निश्ंिचत हो कर मुझे शर्माजी से मिलने की अनुमति दे दें.