‘‘शर्वरी दीदी अपना समझ कर ही तो मदद कर रही हैं. कितनी आशा ले कर आएंगी वे. जब उन्हें पता चलेगा कि यह महारानी तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं हैं तो क्या बीतेगी उन पर. मैं तो सोच रही हूं कि उन्हें फोन कर के मना कर दूं,’’ ललिता देवी अब भी अपनी ही धुन में थीं.
‘‘नहीं मां, ऐसा मत करो, मौसी बुरा मान जाएंगी,’’ नीरजा बोली.
‘‘ठीक कह रही है, नीरजा. पहले से ही यह सोच कर बैठ जाना कि हम तो किसी से मिलेंगे ही नहीं, कहां की बुद्धिमानी है. शर्वरी दीदी किसी को ले कर आ रही हैं तो कुछ सोचसमझ कर ही ला रही होंगी. सुप्रिया, इस बारे में मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगा. तुम्हारी मां जो कह रही हैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हैं. तुम्हें उन की बात का सम्मान करना चाहिए,’’ अपूर्व ने पत्नी का पक्ष लेते हुए कहा.
‘‘ठीक है. मैं आप के अतिथियों से मिल लूंगी. बस, इतना ही आश्वासन दे सकती हूं. क्या करूं, न आप को नाराज कर सकती हूं न शर्वरी मौसी को,’’ सुप्रिया ने हथियार डाल दिए. वह नहीं चाहती थी कि यह बहस और लंबी खिंचे. परिवार का आश्वासन पा कर ललिता तैयारियों में जुट गईं. घर को सजानेसंवारने का काम वे रात में ही पूरा कर लेना चाहती थीं. अगला दिन तो खानेपीने की तैयारियों में ही बीत जाएगा. लगभग 1 बजे जब सुप्रिया अपना लैपटौप बंद कर सोने चली तो पाया कि ललिता देवी अब भी नए कुशन कवर लगाने में जुटी थीं.