आज उसे किसी का भय नहीं था. वैसे भी पानी तो साढ़े 8 बजे तक आता है. इसलिए चैन की सांस ले कर वह फिर से सो गई. जब आंख खुली तो सुबह के 7 बज चुके थे. देखा राजीव चाय का कप हाथ में लिए उसे उठा रहा था, ‘‘मां, उठो, चाय पी लो, क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है? मुझे तो चिंता हो रही थी. तुम इतनी देर तक कभी सोती नहीं.’’
कुछ पल तक तो मालती राजीव को देखती ही रह गई. उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वह जो देख रही है वह सपना है या सच.
‘‘राजू, तू चाय बना कर लाया मेरे लिए?’’
‘‘तो क्या हुआ, तुम इतने आराम से गहरी नींद में सो रही थीं तो मुझे लगा कि तुम्हें कौन परेशान करे, मैं ही बना लाता हूं.’’
‘‘अरे, नहीं रे, बिलकुल ठीक हूं मैं, ऐसे ही मालूम नहीं क्यों, आज आंख नहीं खुली,’’ मालती बोली.
‘‘सर्दी भी तो बहुत पड़ रही है,’’ चाय की चुस्की लेते हुए राजीव बोला.
‘‘हां, शायद इसीलिए उठ नहीं पाई.’’
आज चाय में मालती को एक अजीब स्वाद की अनुभूति हो रही थी. न जाने कितने समय के बाद बेटे के पास बैठ कर बात करने का अवसर मिला है. उसे याद आने लगे वे पल जब राजीव छोटा था और वह बीमार हो जाती तो वह उसे बिस्तर से उठने ही न देता था.
उस की भोली, प्रेम से भरी बातें सुन कर मालती के बीमार चेहरे पर मुसकराहट तैर जाती थी. गर्व से वह सुधीर की तरफ देख कर कहती, ‘सुन रहे हो, मेरा बेटा मेरा कितना खयाल रखता है.’