‘बुआ, दादीं की तबियत ठीक नहीं है. वह तो एम्बुलेंस मिल गई वरना लॉक डाउन के कारण आना भी कठिन हो जाता. उन्हें मेडिकल कॉलेज में एडमिट करवा दिया है. पल्लव भी नहीं आ पा रहा है, माँ को तो आप जानती ही है, ऐसी स्थिति में नर्वस हो जाया करती हैं, यदि आप आ जायें तो....’ फोन पर परेशान सी सुकन्या ने कहा.
क्या, माँ बीमार है...पहले क्यों नहीं बताया ? शब्द निकलने को आतुर थे कि मनीषा ने अपनी शिकायत मन में दबाकर कहा …
‘ तू चिंता मत कर, मैं शीध्र से शीध्र पहुँचने का प्रयत्न करती हूँ....’
सुदेश जो आफिशियल कार्य से विदेश गये थे, कल ही लौटे थे. उन्हें चौदह दिन का क्वारेंन्टाइन पूरा करना है. मनीषा ने उनके लिये खाना, पानी तथा फल इत्यादि कमरे के दरवाजे पर रखे स्टूल पर रख दिया तथा सुकन्या की बात उन्हें बताते हुये उनसे कहा कि वह जल्दी से जल्दी घर लौटने का प्रयत्न करेगी. आवश्यकता के समय लॉक डाउन में एक व्यक्ति तो जा ही सकता है...सोचकर उसने गाड़ी निकाली और चल पड़ी.... गाड़ी के चलने के साथ ही बिगड़ैल बच्चे की तरह मन अतीत की ओर चल पड़ा....
सुकन्या, उसकी पुत्री न होकर भी उसके दिल के बहुत करीब है. वह उसके भाई शशांक और अनुराधा भाभी की पहली संतान है. घर में बीस वर्ष पश्चात् जब बेटी ने जन्म लिया तो सिवाय माँ के सबने उसका उत्साह से स्वागत किया था. भाई की तो वह आँखों का तारा थी....नटखट और चुलबुली....अनुप्रिया भाभी के लिये वह खिलौना थी. माँ की एक ही रट थी कि उन्हें घर का वारिस चाहिये. उनकी जिद का परिणाम था कि एक वर्ष पश्चात् वारिस आ भी गया. माँ तो पल्लव के आने से अत्यंत प्रसन्न हुई. भाभी पल्लव का सारा काम करके यदि सुकन्या की ओर ध्यान देती तो माँ खीज कर कहती, ‘न जाने कैसी माँ है, जो बेटे पर ध्यान ही नहीं देती है, अरे, बेटी तो पराया धन है, ज्यादा लाड़ जतायेगी तो बाद में पछतायेगी....’