लड़के वाले मेरी ननद को देख कर जा चुके थे. उन के चेहरों से हमेशा की तरह नकारात्मक प्रतिक्रिया ही देखने को मिली थी. कोई कमी नहीं थी उन में. पढ़ी लिखी, कमाऊ, अच्छी कदकाठी की. नैननक्श भी अच्छे ही कहे जाएंगे. रंग ही तो सांवला है. नकारात्मक उत्तर मिलने पर सब यही सोच कर संतोष कर लेते कि जब कुदरत चाहेगी तभी रिश्ता तय होगा. लेकिन दीदी बेचारी बुझ सी जाती थीं. उम्र भी तो कोई चीज होती है.
‘इस मई को दीदी पूरी 30 की हो चुकी हैं. ज्योंज्यों उम्र बढ़ेगी त्योंत्यों रिश्ता मिलना और कठिन हो जाएगा,’ सोचसोच कर मेरे सासससुर को रातरात भर नींद नहीं आती थी. लेकिन जिसतिस से भी तो संबंध नहीं जोड़ा जा सकता न. कम से कम मानसिक स्तर तो मिलना ही चाहिए. एक सांवले रंग के कारण उसे विवाह कर के कुएं में तो नहीं धकेल सकते, सोच कर सासससुर अपने मन को समझाते रहते.
मेरे पति रवि, दीदी से साल भर छोटे थे. लेकिन जब दीदी का रिश्ता किसी तरह भी होने में नहीं आ रहा था, तो मेरे सासससुर को बेटे रवि का विवाह करना पड़ा. था भी तो हमारा प्रेमविवाह. मेरे परिवार वाले भी मेरे विवाह को ले कर अपनेआप को असुरक्षित महसूस कर रहे थे. उन्होंने भी जोर दिया तो उन्हें मानना पड़ा. आखिर कब तक इंतजार करते.
मेरे पति रवि अपनी दीदी को बहुत प्यार करते थे. आखिर क्यों नहीं करते, थीं भी तो बहुत अच्छी, पढ़ीलिखी और इतनी ऊंची पोस्ट पर कि घर में सभी उन का बहुत सम्मान करते थे. रवि ने मुझे विवाह के तुरंत बाद ही समझा दिया था उन्हें कभी यह महसूस न होने दूं कि वे इस घर पर बोझ हैं. उन के सम्मान को कभी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, इसलिए कोई भी निर्णय लेते समय सब से पहले उन से सलाह ली जाती थी. वे भी हमारा बहुत खयाल रखती थीं. मैं अपनी मां की इकलौती बेटी थी, इसलिए उन को पा कर मुझे लगा जैसे मुझे बड़ी बहन मिल गई हैं.