अब रेवती का उत्साह बढ़ गया. अगले दिन उतावली हो समय से पहले ही मंदिर में जा बैठी. साधुमहाराज पुजारी के साथ जब प्रवचन हौल में पधारे तो उन की नजर गद्दी के ठीक सामने अकेली बैठी रेवती पर पड़ी.श्वेत वस्त्र, सूनी मांग, सूनी कलाइयां देख उन्हें सम झते देर न लगी कि कोई विधवा है. वे धीमे स्वर में पुजारी से रेवती का सारा परिचय पता कर आंखें बंद कर गद्दी पर विराजमान हो गए. देखतेदेखते हौल खचाखच भर गया.
प्रवचन के बीच आज उन्होंने एक ऐसा भजन गाने के लिए चुना जब कृष्ण गोपियों से दूर चले जाते हैं. गोपियां उन के विरह में रोती हुई गाती हैं- ‘आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे, वन में अकेली राधा खोईखाई फिरे...’ लोग स्वर से स्वर मिलाने लगे. रेवती की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. अंत में प्रसाद वितरण के बाद लोग चले गए तो रेवती भी उठ खड़ी हुई. अचानक उस ने देखा साधुमहाराज उसे रुकने का संकेत कर रहे हैं. वह असमंजम में इधरउधर देख खड़ी हो गई.
साधुमहाराज ने उसे अपनी गद्दी के पास बुला कर बैठने को कहा. डरती, सकुचाती रेवती बैठ गई तो उन्होंने रेवती के बारे में जो पुजारी से जानकारी हासिल की थी, सब अपने ज्योतिष ज्ञान के आधार पर रेवती को कह डाली. भोली रेवती हैरान हो उठी. उन के कदमों पर लोट गई, बोली, ‘‘यह सब सत्य है.’’
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साधु महाराजजी ने कहा, ‘‘जब मैं पूजा के समय गहरे ध्यान में था तो एक फौजी मु झे ध्यानावस्था में दिखाई देता है. मानो कुछ कहना चाहता हो. अब सम झ में आया वह तुम्हारा शहीद पति ही है जो मेरे ध्यान ज्ञान के जरिए कोई संदेश देना चाहता है. कल जब मैं ध्यान में बैठूंगा तो उस से पूछूंगा.’’