लेखिका- मृदुला नरूला
‘‘अम्माजी, ऐसा कभी नहीं हो सकता. आप मेरी मां हैं, मैं आप की बात पर विश्वास करूंगा. किंतु लगता है आप को गलतफहमी हुई है. रेखा शराब पीने लगी है, यह कैसे मान लूं, मैं.’’
‘‘बेटा, तेरे घर में तूफान आया है. और मैं तेरी मां हूं. यदि तेरे घर को तबाह करने वाले तूफान की आहट न पा सकूं तो मुझ से बढ़ कर मूंढ़ कौन होगा. बस, मैं तो यही कहती हूं, जल्दी से जल्दी इंडिया आ जा और तूफान से होने वाली तबाही को रोक ले.’’
बेटे देवेश से बात कर के अम्माजी ने फोन रख दिया था. ‘देवेश आज यहां नहीं है, तो मेरा तो कर्तव्य है कि उस के घर के तिनके बिखरने से पहले उन्हें बचा लूं,’ सोचतेसोचते अम्माजी वहीं सोफे पर लेट गई थीं. बड़े आश्चर्य की बात है कि रेखा पीती है, वे जानती न थीं. वह तो सोसायटी के गेट पर बैठे चौकीदार ने सुबह बताया था, ‘माताजी, देवेश बाबू एक शरीफ और समझदार व्यक्ति हैं.
2 साल पहले जब वे विदेश जा रहे थे तो कहा था कि घर तुम पर छोड़ कर जा रहा हूं, मुझे यह भी याद है कि उन्होंने आप का फोन नंबर भी दिया था, कहा था कि जरूरत पड़े तो अम्माजी को सूचित कर देना. इसीलिए बता रहा हूं, मैम का देर से घर आना ठीक नहीं लगता. आप तो बुजुर्ग हैं. मैम आप की बहू हैं, कहते शर्म आती है. अच्छा हुआ जो आप आ गई हैं संभाल लेंगी.’ सुन कर अम्माजी सन्न रह गई थीं. चुपचाप फ्लैट पर आ गई थीं.