‘‘प्रैशर आया?’’ हाथी जैसी मस्त चाल से झूमते हुए अंदर आते ही जय ने पूछा. ‘‘अरे जय भैया आप को ही आया लगता है, जल्दी जाइए न वाशरूम खाली है,’’ प्रश्रय की छोटी बहन प्रशस्ति जोर से हंसी.
‘‘क्यों बिगाड़ता रहता है जय मेरे बेटे का सुंदर नाम. पहले ढंग से बोल प्रश्रय...’’ नीला, बेटे के नर्सरी के दोस्त संजय को आज भी दोस्त का सही नाम लेने के लिए सता कर खूब मजे लेती. बचपन में जय तोतला था तो उस के मुंह से अलग ही नाम निकलता. धीरेधीरे तो बोल जाता पर जल्दी में कुछ और ही बोल जाता. अब तो उस ने प्रश्रय को पै्रशर ही बुलाना शुरू कर दिया. अमूमन वह सीरियस बहुत कम होता. सीरियस होता तो भी प्रैशर सिंह ही पुकारता और प्रश्रय उसे तोतला. ‘‘अरे आंटीजी छोड़ो भी, कितनी बार कहा आसान सा नाम रख दो. इतना मुश्किल नाम क्यों रख दिया. अब हम ने सही नाम तो रख दिया प्रैशर सिन्हा... हा... हा... अरे मोदीजी की क्या खबर है. कुछ पता भी है, आज क्या नया इजाद कर डाला?’’
‘‘क्या?’’ सब का मुंह खुल गया, फिर कोई नई ‘बंदी’, ‘नोटबंदी’? सब सोच ही रहे थे कि वह मोदीजी... मोदीजी कहते हुए किचन में चला आया. ‘‘ओह... क्या जय भैया...’’ सब भूल ही जाते जय प्रश्रय की नईनवेली पत्नी मुदिता को मोदीजी कहना शुरू किया है.
‘‘अरे मुदिता भी नहीं कह पाता, सिंपल तो है. तो मोदीजी क्या भाभी ही कहा कर... कोई और भाभी तो है नहीं.’’ ‘‘मैं तो भैया मोदीजी ही कहूंगा, रोज नया ही कुछ देखने को मिल जाता है. कुछ नया फिर किया?’’ ‘‘किया है न तभी तो स्कूटी से प्रश्रय साथ दूध लेने गई है. बना रही थी हलवा उस में पानी इतना डाला कि वह लपसी बन गया. अब उसे सुधार कर फटाफट खीर बनाने का प्रोग्राम है. लो आ गए दोनों...’’ नीला मुसकरा कर बोलीं.