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लेखिका- रेनू मंडल

मैं ने मम्मी के गले में बांहें डाल कर कहा, ‘‘ओह, मम्मी, इतनी निराश क्यों होती हो? तुम्हारा लड़का बहुत अक्लमंद है. इस ने स्वाति को ही पसंद कर रखा है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मम्मी चौंक उठीं.

‘‘मतलब यह मम्मी कि स्वाति, राहुल की बूआ की लड़की नहीं है. यह वही लड़की है जिसे जतिन ने पसंद कर रखा है,’’ मैं ने मम्मी को शुरू से अंत तक सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘आप ने और पापा ने तो बिना देखे ही लड़की रिजेक्ट कर दी थी. मेरे पास उसे

आप से मिलवाने का कोई और रास्ता न था.’’

अभी मैं ने अपनी बात पूरी की ही थी कि तभी पापा कमरे में आ गए.

‘‘सुना आप ने, नीलू कह रही है?’’ मम्मी अभी भी मेरी बात से अचंभित थीं.

‘‘मैं ने सब सुन लिया है. इस बारे में हम अब कल बात करेंगे.’’

पापा को शायद सोचने के लिए समय चाहिए था.

अगले दिन तक मैं और जतिन पसोपेश की स्थिति में रहे, पापा के जवाब पर ही हमारी सारी उम्मीदें टिकी थीं. रात को डाइनिंग टेबल पर पापा बोले, ‘‘जतिन, तुम्हें स्वाति पसंद है तो हमें कोई एतराज नहीं है. उसे अपने घर की बहू बना कर हमें भी खुशी होगी, परंतु लड़की वालों से बात करने हम नहीं जाएंगे. उन्हें हमारे घर आना होगा.’’

‘‘यह कोई बड़ी बात नहीं है, पापा. वही लोग आप से बात करने आ जाएंगे.’’

जतिन फोन की तरफ लपका. अवश्य ही वह स्वाति को यह खबर सुनाना चाहता होगा.

रविवार शाम को स्वाति के मम्मीपापा हमारे घर आए. चाय पीते हुए पापा बोले, ‘‘भई, हमें आप की बेटी बहुत पसंद है. हम इस रिश्ते के लिए तैयार हैं. आप सगाई की तारीख निकलवा लें.’’

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