दूसरे दिन छुट्टी के बाद अंबर फिर रूपाली से मिला और उसे पूरी बात बताई. थोड़ी देर बाद रूपाली बोली, ‘‘यार, तुम्हारी समस्या वास्तव में गंभीर हो गई है. अच्छा, तुम्हारे जीजाजी काम क्या करते हैं?’’
‘‘स्टार इंडिया में यूनिट इंचार्ज हैं.’’
‘‘वहां के जनरल मैनेजर तो मेरे जीजाजी के दोस्त हैं.’’
‘‘तो क्या हुआ?’’
‘‘हुआ कुछ नहीं, पर अब होगा. रोज का उन के घर आनाजाना है. रास्ता मिल गया, अब तुम देखते जाओ.’’
अंबर, रूपाली से मिल कर घर पहुंचा तो पूरे मेकअप के साथ इठलाती, बलखाती लाली चाय, नमकीन सजा कर ले आई.
‘‘चाय लीजिए, साहब.’’
‘‘नहीं चाहिए, अभी बाहर से पी कर आ रहा हूं.’’
‘‘तो क्या हुआ? अब यहां एक प्याली मेरे हाथ की भी पी लीजिए.’’
‘‘नहीं, और नहीं चलेगी,’’ इतना कह कर वह अपने कमरे में जा कर आगे के बारे में योजना बनाने लगा.
2-3 दिन और बीत गए. इधर घर में वही तनाव, उधर रूपाली का मुंह बंद. अंबर को लगा वह पागल हो जाएगा. चौथे दिन जब घर लौटा तो फिर सन्नाटा ही मिला. दीदी का बुरा हाल था. बिस्तर में पड़ी रो रही थीं. जीजाजी सिर थामे बैठे थे, मांबेटी की कोई आवाज नहीं आ रही थी. कमरे का परदा पड़ा था. उसे देख दीदी आंसू पोंछ उठ बैठीं.
‘‘मुन्ना, फ्रेश हो ले. मैं चाय लाती हूं.’’
‘‘नहीं, दीदी, पहले बताओ क्या हुआ, जो घर में सन्नाटा पसरा है?’’
‘‘साले बाबू, भारी परेशानी आ पड़ी है. तुम तो जानते ही हो कि हमारी बिल्ंिडग निर्माण की कंपनी है. बिलासपुर के बहुत अंदर जंगली इलाके में एक नई यूनिट कंपनी ने खोली है, वहां मुझे प्रमोशन पर भेजा जा रहा है.’’