अब मनोविज्ञान में शोध कर रहे निखिल को क्या बताती कि अभी समय व्यर्थ न करने के नखरे कर के अब वह जीवन की सांध्य बेला व्यर्थ नहीं करेगी. कुलदीप का सारा परिवार ही उसे बहुत सुलझ हुआ लगा.
निखिल की यह शंका कि उस में आत्मविश्वास की कमी है या वह बीवी की कमाई खाने वाला है, कुलदीप ने यह कह कर निर्मूल सिद्ध कर दी, ‘‘मैरी फैक्टरी सुचारु रूप से चल रही है. अब मैं इस का और विस्तार करना चाहता हूं जिस के लिए मुझे इस में और अधिक समय लगाना पड़ेगा, लेकिन उस के लिए मैं ब्रह्मचारी बनना भी नहीं चाहता और न ही ऐसी पत्नी चाहता हूं जो फैक्टरी को अपनी सौत समझे यानी घरेलू बीवी जिस के लिए त्योहार, रिश्तेदार मेरे काम से ज्यादा जरूरी हों.
‘‘अपने कैरियर के प्रति समर्पित लड़की चाहता हूं जो स्वयं भी व्यस्त रहती हो, फुरसत के क्षणों की अहमियत समझ कर खुद भी उन्हें भरपूर जीए और मुझे भी जीने दे. शादी के
बाद लोग घरगृहस्थी के बारे में सोच कर
रिस्क लेने से डरते हैं, लेकिन कमातीधमाती धर्मपत्नी हो तो कुछ हद तक जोखिम उठाया जा सकता है.’’
इस के बाद कुछ कहनेसुनने को बचा ही नहीं और दोनों की शादी तय हो गई. कुलदीप का छोटा भाई अहमदाबाद में एमबीए के अंतिम वर्ष में था और परीक्षा में कुछ ही सप्ताह शेष थे सो कुलदीप का परिवार चाहता था कि सगाई, शादी उस के आने के बाद ही करें. नमिता के परिवार को तो तैयारी के लिए समय मिल रहा था. कुलदीप और नमिता टीवी देखने या कुछ पढ़ने में बिताती थी. अपनी मित्र मंडली तो थी ही, निखिल और दूसरे कजिन के साथ भी कोई न कोई प्रोग्राम बनता ही रहता था.