बस गरम रोटी सेंकती थी. इस बीच, भारती का जन्मदिन आया तो उसे एक माइक्रोवेव गिफ्ट, कर गई. सुदर्शना से परिचय होने के बाद भारती के परिवार में मानो सुख, उल्लास की बाढ़ आ गई. सुखी परिवार तो पहले भी था पर अब एक मजबूत, घने पेड़ की छाया और मिल गई. काम है नहीं, चिंता भी कुछ नहीं तो भारती नित नया कुछ व्यंजन या पकवान बनाती. अब हाथ में पूरा समय है तो उस ने पुराने सामानों की सफाई शुरू की.
उसे सुदर्शना की याद आई. कुछ हफ्ते पहले ही उस की तबीयत खराब हुई थी. तब भारती अधिकतर समय उसी के पास बैठी रहती. सूप, चायकौफी बना कर पिलाती. बातें करती. उस समय पूछा था, ‘‘दीदी, आप इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी, इतनी बड़ी नौकरी, आप के पिता भी कितने बड़े डाक्टर थे, जैसा कि आप ने बताया तो आप की शादी नहीं की उन्होंने?’’ वह हंसी, ‘‘सब को परिवार, पति, संतान का सुख नहीं मिलता.’’
‘‘पर क्यों, दीदी?’’
‘‘अरे, मैं कुंआरी नहीं. शादी हुई थी मेरी, पूरे सात फेरे, सिंदूरदान सबकुछ.’’
चौंकी भारती, हाय, कैसा न्याय है? इतनी नेक हैं दीदी और उन को विधवा का जीवन.
‘‘दीदी, आप के पति का देहांत कैसे हुआ था?’’
सिहर उठी थी सुदर्शना, ‘‘न, न, वे जीवित हैं, सुखी हैं. स्वस्थ हैं.’’
‘‘तो क्या उन्होंने आप को छोड़ दिया? क्यों?’’
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‘‘नहीं रे, वे मुझे कभी नहीं छोड़ते पर मजबूरी थी. देख, एक तो हम दोनों ही नाबालिग थे. स्कूल से भाग शादी की थी. फिर वे थे गरीब परिवार के. मेरे पिता इतने पैसे वाले और प्रभावशाली व्यक्ति थे. उन्होंने मेरे पति को बहुत डराया. उन के पिता को बुला कर धमकी दी कि अगर अपने बेटे को नहीं समझाया तो पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे. वह हम दोनों का पहला प्यार था. बहुत छोटेपन से हम एक आर्ट स्कूल में थे. वहां से ही प्यार था. उस के बाद मुझे छोड़ बाहर चले गए वे. हम हमेशा के लिए अलग हो गए.’’ भारती के आंसू आ गए, ‘‘कितनी दुखभरी कहानी है. फिर आप ने शादी नहीं की?’’