कई बार वह मन ही मन सोचती कि कब तक लोग इस गोरे रंग के पीछे भागते रहेंगे. अर्णव के साथ चैटिंग करने के बाद वह भी उसे मन ही मन पसंद करने लगी थी.
वसुधाजी चूंकि दोनों पक्षों से परिचित थीं, इसलिए उन्होंने सब की
सुविधा को ध्यान में रखते हुए संडे को एक रैस्टोरैंट में मिलने का प्रोग्राम बना लिया.
अनन्या के मन में भी प्यार का अंकुर फूट चुका था. वह भी थोड़ी घबराई हुई रैस्टोरैंट में अपनी मां और वसुधाजी के साथ पहुंची.
अपनी उंगली में अर्णव के नाम की अंगूठी पहन कर मन ही मन बहुत खुश थी.
मीराजी ने कहा था कि वे किसी तरह का लेनदेन नहीं करेंगी. अब अनन्या उन की बहू है, इसलिए अब उस के लिए भी फिक्र करने की आप को कोई आवश्यकता नहीं है.
उन की इन बातों को सुन कर सरलाजी की आंखें भर आई थीं.
उत्साहित सरलाजी बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए तैयारी में जुट गई थीं. वे सोचतीं कि इकलौती बेटी की शादी इतनी शानों शौकत से करें कि सब देखते रह जाएं.
टौप का मैरिज हौल, डैकोरेशन, इवैंट मैनेजमैंट आदि सबकुछ पर उन्होंने पानी की तरह पैसा बहाया.
शौपिंग तो पूरी ही नहीं हो पा रही थी. कभी बुटीक तो कभी ज्वैलर, तो
कभी कुछ और. मांबेटी और उन की वसुधा दी शादी की तैयारियों में लगी हुई थीं. लेकिन तैयारियां थीं कि पूरी ही नहीं हो पा रही थीं.
शादी के 5 दिन बचे थे. तभी एक दिन उस ने बताया कि आज मम्मीजी ने उस से व्रत करने को बोला है. उन्होंने उस के लिए पूजा रखी है. उस के राहु के घर में शनि बैठा है और सूर्य की अंतर्दशा में मंगल नीच घर में है, इसलिए शादी से पहले ग्रहशांति के लिए पंडितजी ने यह पूजा जरूरी बताई है.