बड़े भाई के भारत लौट आने का समाचार सुन कर उसे सुखद आश्चर्य हुआ, ‘‘चलिए अच्छा ही हुआ, जो वे वापस आ गए. आप से अनुरोध है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले अच्छी तरह सोचविचार कर लीजिएगा.’’
‘‘हां सोचूंगी... अभी कुछ नहीं कह सकती,’’ कह कर स्मिता ने थोड़ी देर कविता व रोहित से बात कर के फोन रख दिया.
पलक के लौटने पर स्मिता ने उसे अभिजीत के फोन के बारे में बताया तो डैक औन करती पलक बोली, ‘‘क्या मां... पढ़ाई पूरी हुई नहीं कि बस शादी की जल्दी पड़ गई आप को.’’
प्यार से बेटी को देखती स्मिता उस का सिर सहलाते हुए बोली, ‘‘बेटा, पढ़ाई जितनी चाहे करो, पर बेटियां तो पराया धन होती हैं. एक न एक दिन तो उन्हें जाना ही होता है. जब अच्छा रिश्ता मिल रहा है तो अभी करने में हरज भी क्या है?’’
‘‘घरजंवाई ढूंढ़ लो मां. मैं कहीं नहीं जा रही हूं आप को छोड़ कर...’’ लापरवाही से पलक बोली.
‘‘धत पगली... इतनी बड़ी हो गई है, पर बचपना नहीं गया,’’ मां ने मीठी झिड़की देते हुए कहा.
कुछ ही दिनों बाद अभिजीत ने फोन पर स्मिता को खुशखबरी दे दी कि उन लोगों को फोटो में पलक बेहद पसंद आई है. बस, 2 दिन बाद विवेक के आने का इंतजार है, ताकि वे दोनों भी एकदूसरे को देखसमझ लें तो रिश्ता पक्का कर दिया जाए. फिर उन के आने का दिन व समय बता कर उस ने फोन रख दिया.
स्मिता ने अतिथियों को सम्मानपूर्वक अंदर ला कर ड्राइंगरूम में बैठाया. आरंभ में औपचारिक वार्त्तालाप चलता रहा पर जल्द ही उन लोगों के सुलझे व्यक्तित्व के कारण वातावरण दोस्ताना हो गया.