सुधा कसेरा मंदबुद्धि था. अपने मन के जज्बात व्यक्त करता भी कैसे जब समझ ही कुछ नहीं आता था. लोगों की तिरस्कृत नजरों को झेलता हुआ मैं अब बस दूसरे के हाथों की कठपुतली मात्र रह गया था... पिता की गलतियों के कारण ही मैं मंदबुद्धि बालक पैदा हुआ. जब मैं मां के गर्भ में था तो मेरी मां को भरपूर खाना नहीं मिलता था. उन को मेरे पिता यह कह कर मानसिक यंत्रणा देते थे कि उन की जन्मपत्री में लिखा है कि उन का पहला बच्चा नहीं बचेगा. वह बच्चा मैं हूं. जो 35 वर्षगांठ बिना किसी समारोह के मना चुका है.
पैदा होने के बाद मैं पीलिया रोग से ग्रसित था, लेकिन मेरा इलाज नहीं करवाया गया. मेरी मां बहुत ही सीधी थीं मेरे पापा उन को पैसे नहीं देते थे कि वे अपनी मरजी से मेरे लिए कुछ कर सकें. सबकुछ सहते हुए वे अंदर से घुटती रहती थीं. वह जमाना ही ऐसा था जब लड़कियां शादी के बाद अपनी ससुराल से अर्थी में ही निकलती थीं. मायके वाले साथ नहीं देते थे. मेरी नानी मेरी मां को दुखी देख कर परेशान रहती थीं. लेकिन परिवार के अन्य लोगों का सहयोग न मिलने के कारण कुछ नहीं कर पाईं. मैं 2 साल का हो गया था, लेकिन न बोलता था, न चलता था. बस, घुटनों चलता था.
मेरी मां पलपल मेरा ध्यान रखती थीं और हर समय मु झे गोदी में लिए रहती थीं. शायद वे जीवनभर का प्यार 2 साल में ही देना चाहती थीं. मेरे पैदा होने के बाद मेरे कार्यकलाप में प्रगति न देख कर वे बहुत अधिक मानसिक तनाव में रहने लगीं. जिस का परिणाम यह निकला कि वे ब्लडकैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण 3 महीने में ही चल बसीं. लेकिन मैं मंदबुद्धि बालक और उम्र भी कम होने के कारण सम झ ही नहीं पाया अपने जीवन में आए इस भूचाल को. सूनी आंखों से मां को ढूंढ़ तो रहा था, लेकिन मु झे किसी से पूछने के लिए शब्दों का ज्ञान ही नहीं था.