कहानी- यामिनी वर्मा
घ ड़ी की तरफ देख कर ममता ने कहा, ‘‘शकुन, और कोई बैठा हो तो जल्दी से अंदर भेज दो. मुझे अभी जाना है.’’
और जो व्यक्ति अंदर आया उसे देख कर प्रधानाचार्या ममता चौहान अपनी कुरसी से उठ खड़ी हुईं.
‘‘रोहित, तुम और यहां?’’
‘‘अरे, ममता, तुम? मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि यहां इस तरह तुम से मुलाकात होगी. यह मेरी बेटी रिया है. 6 महीने पहले इस की मां की मृत्यु हो गई. तब से बहुत परेशान था कि इसे कैसे पालूंगा. सोचा, किसी आवासीय स्कूल में दाखिला करा दूं. किसी ने इस स्कूल की बहुत तारीफ की थी सो चला आया.’’
‘‘बेटे, आप का नाम क्या है?’’
‘‘रिया.’’
बच्ची को देख कर ममता का हृदय पिघल गया. वह सोचने लगी कि इतना कुछ खोने के बाद रोहित ने कैसे अपनेआप को संभाला होगा.
‘‘ममता, मैं अपनी बेटी का एडमिशन कराने की बहुत उम्मीद ले कर यहां आया हूं,’’ इतना कह कर रोहित न जाने किस संशय से घिर गया.
‘‘कमाल करते हो, रोहित,’’ ममता बोली, ‘‘अपनी ही बेटी को स्कूल में दाखिला नहीं दूंगी? यह फार्म भर दो. कल आफिस में फीस जमा कर देना और 7 दिन बाद जब स्कूल खुलेगा तो इसे ले कर आ जाना. तब तक होस्टल में सभी बच्चे आ जाएंगे.’’
‘‘7 दिन बाद? नहीं ममता, मैं दोबारा नहीं आ पाऊंगा, तुम इसे अभी यहां रख लो और जो भी डे्रस वगैरह खरीदनी हो आज ही चल कर खरीद लेते हैं.’’
‘‘चल कर, मतलब?’’
‘‘यही कि तुम साथ चलो, मैं इस नई जगह में कहां भटकूंगा.’’
‘‘रोहित, मेरा जाना कठिन है,’’ फिर उस ने बच्ची की ओर देखा जो उसे ही देखे जा रही थी तो वह हंस पड़ी और बोली, ‘‘अच्छा चलेंगे, क्यों रियाजी?’’