एक दिन नरेश ने टीना को बताया कि उस के आफिस का माहौल कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यही हाल रहा तो एक दिन वापस घर जाना पडे़गा. यह सुन कर टीना अंदर ही अंदर कांप गई कि कैसे रहेगी वह सासससुर, ननददेवर के बीच. सुबह- शाम खाना बनाना और घर की देखभाल करना उस के बूते की बात न थी. अब भी वह कई बार 9 बजे सो कर उठती. नरेश कभी विरोध न करता. चुपचाप चाय पी कर आफिस चला जाता है. नरेश की कही बात टीना ने तुरंत अपनी मम्मी को बताई. ‘‘यह तो बड़ी बुरी खबर है टीना.’’
‘‘मम्मी, मैं तो नरेश के साथ दिल्ली आ जाऊंगी.’’
‘‘नरेश न माना तो...’’
‘‘इस के लिए आप कोई उपाय करो न मम्मी.’’
‘‘अच्छा, सोच कर बताती हूं,’’ कह कर नीता ने फोन रख दिया.
शाम को नरेश के आने से पहले नीता ने टीना को फोन किया, ‘‘टीना, तुम्हारी बातों ने मुझे बड़ा विचलित किया है. ससुराल में कैसे रहोगी जीवन भर. मैं एक तांत्रिक को जानती हूं. उस के पास हर समस्या का उपाय है. वह हमारी समस्या चुटकियों में हल कर देंगे.’’
‘‘यह ठीक है मम्मी, कल सुबह बात करूंगी,’’ कह कर टीना आश्वस्त हो गई.
अगले दिन दोपहर को टीना के पास उस की मां का फोन आया, ‘‘बेटी, घबराने की बात नहीं है. बाबा ने यकीन दिलाया है कि सब ठीक हो जाएगा. उन्होंने नरेश को पहनने के लिए एक अंगूठी दी है. मैं ने कूरियर से उसे तुम्हारे पास भेज दिया है. तुम उसे नरेश को जरूर पहना देना.’’
2 दिन में अंगूठी टीना के पास पहुंच गई. अगूंठी सोने की थी. टीना ने वह बड़े प्यार से नरेश की उंगली में पहना दी. नरेश ने प्रश्नवाचक दृष्टि से टीना को देखा.