लेखिका-रिजवाना बानो ‘इकरा’
चंचल को अपनी इन खयालों की दुनिया से बाहर ले कर आई शिशिर की आवाज, “चंचल, मां बुला रही है, ड्राइंगरूम में, जल्दी आओ.“
यह सुन कर चंचल का दिल जोरों से धड़कने लगा कि अब खैर नहीं. डिनर का वक्त तो टल गया, लेकिन अब पक्की तरह से क्लास लगेगी.
ड्राइंगरूम में पहुंच कर देखा तो सब शांत था यानी कि कोई और बात है, चलो अच्छा हुआ.
मिसेज रस्तोगी ने बिठाया दोनों बहुओं को और अपने फौरेन टूर के बारे में बताने लगीं. इस बार रक्षाबंधन पर उन का यूरोप घूमने का प्लान है, अपनी दोनों बेटियों और दोनों बेटों के साथ. दोनों बहुओं को इस के एवज में छूट दी गई थी कि वो एक हफ्ता अपने पीहर रह कर आ सकती हैं, चाहें तो...
चंचल की आंखों में चमक आ गई, जैसे कि मांगी मुराद मिल गई हो, बल्कि उस से ज्यादा. अब वो आकांक्षा के साथ कितना सारा वक्त बिता पाएगी. बाकी घर वालों को उस की खुशी का राज समझ नहीं आ रहा था, लेकिन चंचल बहुत खुश थी.
आखिरकार रक्षाबंधन का समय भी आ गया. इधर, सुहाना और आशु खुश थे कि एक सप्ताह ननिहाल में धमाल मचाएंगे. तो उधर, चंचल के मन में भाई के साथसाथ आकांक्षा से मिलने की बेचैनी. चंचल के मातापिता तो तब से अपने नातीनातिन को खिलाने को बेताब थे. सालभर में, एक रक्षाबंधन पर ही चंचल घर आती थी और वो भी सिर्फ एक दिन के लिए, आज पूरे सप्ताह के लिए आ रही थी.
शनिवार का दिन त्योहार में गुजर गया, अगला दिन इतवार था, आकांक्षा को भी औफिस से फुरसत थी और चंचल को भी, अपने ससुराल की ड्यूटी से. आकांक्षा के घर मिलना तय हुआ. सुबहसुबह, 11 बजे ही चंचल को भाई आकांक्षा के यहां छोड़ आया.