अमृता को अजीब लगा मगर स्वामीजी ने तुरंत कुमार की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘कैसे हो भक्त कुमार?’’
‘‘स्वामीजी मैं अच्छा हूं. बस आप से अपनी पत्नी अमृता को मिलाने लाया था.’’
‘‘आओ देवी अमृता मेरे करीब आ कर बैठो.’’
अमृता स्वामीजी के करीब चली गई. स्वामी ने उस का हाथ देखने के लिए कलाई पकड़ी और अपनी तरफ खींच लिया. अमृता को यह अच्छा नहीं लगा.
स्वामी ने जिस तरह उस का हाथ पकड़ रखा था और जिन आंखों से अमृता
को देख रहा था वह उस के लिए सहज नहीं था.
‘‘अद्भुत भक्त कुमार, आप की बीवी जितनी दिखने में खूबसूरत हैं उतनी ही खूबसूरत इन की किस्मत भी है. इन की वजह से आप जिंदगी में बहुत तरक्की करेंगे... कुछ लोगों के चेहरे पर ही लिखा होता है कि बस ये जिन के साथ होंगे उन की जिंदगी में सबकुछ वारेन्यारे ही होगा.’’
जिस अंदाज में और जिस तरह से स्वामी अमृता की तरफ देखते हुए ये सब बातें कह रहा था वे सब बातें अमृता को अच्छी नहीं लग रही थीं. उसे स्वामी के अंदर एक घिनौना जानवर दिख रहा था. जल्दी से हाथ छुड़ा कर वह खड़ी हो गई.
कुमार ने उसे घूर कर देखा और फिर से बैठने को कहा. इस बार स्वामी ने उसे चेहरे को ऊपर की तरफ करने को कहा. फिर खुद उस के गले में पीछे की तरफ हाथ रखा. अमृता को अजीब लिजलिजा सा एहसास हुआ.
स्वामी ने उस की गरदन की निचली हड्डी पर हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘उम्र के 6ठे दशक में देवी अमृता के जीवन में राजयोग है. भक्त कुमार आप की बीवी आप को हर सुख देगी... धन्य है यह देवी, ‘‘कह कर स्वामी ने हाथ हटाया और आंखें बंद कर कोई मंत्र पढ़ने का दिखावा करने लगा.