अजय से असलियत ज्यादा दिन छिपी न रह सकी. एक दिन अजय को उस का सहयोगी हार्दिक जबरदस्ती लंच के लिए बाहर ले गया. रेस्तरां में जाते ही उस ने एक कोने में किसी लड़के के साथ बैठी रिनी को देख लिया, हार्दिक ने भी देख लिया था, हार्दिक अजय का बहुत अच्छा दोस्त था. थोड़ी दूर एक कोने में बैठ कर अजय ने रिनी को फोन किया.
रिनी ने फोन उठाया.
‘‘रिनी, कहां हो?’’
‘‘एक फ्रैंड के घर.’’
‘‘घर कब तक आओगी?’’
‘‘देखती हूं.’’
फोन पर बात करते हुए अजय रिनी की टेबल पर जा कर खड़ा हो गया. उस का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.
रिनी ने बेशर्मी से कहा, ‘‘अच्छा तो मेरी जासूसी हो रही है? तुम्हारी मां ने भेजा होगा?’’
‘‘शटअप.’’
‘‘इस से मिलो, यह है मेरा खास दोस्त, यश.’’
अजय ने कुछ कहने के लिए जैसी ही मुंह खोला, रिनी ने चेतावनी दी, ‘‘यहां तमाशा खड़ा कर के अपना ही नुकसान करोगे अजय.’’
अजय ने माहौल पर नजर डाली, लंचटाइम था, रेस्तरां पूरा भर चुका था.
‘‘मैं तुम से घर पर बात करूंगा, उठो, चलो.’’
‘‘नहीं मैं तो अभी लंच कर रही हूं. शाम को मिलते हैं.’’
रिनी की बेहयाई देख अजय का गुस्सा काबू के बाहर हो रहा था. हार्दिक उस का हाथ पकड़ उसे रेस्तरां से बाहर ले गया. पास के ही किसी और रेस्तरां में बैठ कर हार्दिक ने कहा, ‘‘जो हुआ, बुरा हुआ. ठंडे दिमाग से काम लेना, अजय. रिनी के तेवर मुझे ठीक नहीं लग रहे.’’
अजय फिर औफिस नहीं गया. सीधा घर आ गया. हार्दिक को ही उस ने
अपना सामान संभालने के लिए बोल दिया.