नवनी ने जब पिकनिक की बात पति दिव्य और बेटी सौम्या को बताई तो दोनों ने मुंह बिचका दिए.
“पिकनिक और वह भी उन गंवारू औरतों के साथ? मौम प्लीज... अपने बोरिंग प्रोग्राम्स से मुझे तो कम से कम दूर ही रखा करो... वैसे भी मैं फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने जा रही हूं... प्लीज... सौरी...” सौम्या ने अपना फैसला सुना दिया.
"तुम भी न यार, उड़ते तीर लेती फिरती हो... पता नहीं कहां से यह समाजसेवा का भूत सवार हुआ है... अरे भई, सप्ताह का एकमात्र दिन जब मुझे घोड़े बेच कर सोने को मिलता है... वह भी मैं तुम्हारे सिरफिरे कार्यक्रम की भेंट चढ़ा दूं... इतना बेवकूफ मैं बेशक दिखता हूं लेकिन हूं नहीं...” दिव्य ने भी उसे टका सा जवाब दे कर हमेशा की तरह जमीन दिखा दी. लेकिन आज नवनी निराश नहीं हुई. कुंतल का मुसकराता हुआ चेहरा उसे प्रोत्साहित कर रहा था. वह तैयारी में जुट गई.
महीने के लास्ट संडे को शहर के शोरशराबे से दूर एक फौर्महाउस में पिकनिक पर जाना निश्चित किया गया. संस्था से जुडी महिलाओं के लिए एक बड़ी बस किराए पर ली गई. नवनी और कुंतल ने कुंतल की गाड़ी से जाना निश्चित किया.
संडे को जब सब पिकनिक जाने के लिए औफिस के कंपाउंड में जमा हुए तो नवनी देखती ही रह गई. संस्था की यूनिफार्म से बिलकुल अलग, विभिन्न तरह के रंगों में सजी महिलाएं काफी खूबसूरत लग रही थीं. कुछ खुद के ओढ़े हुए और कुछ परिवारसमाज के बांधे हुए बंधनों से आजाद पहली बार यों बेफिक्री से सिर्फ खुद के लिए जीने के एहसास मात्र से सब के चेहरे खिले हुए थे. सब को टटोलती हुई उस की आंखें सीधे जा कर कुंतल पर टिक गईं. आसमानी रंग की टीशर्ट और काली जींस में वह काफी कूल दिख रहा था. नवनी कुंतल की तरफ बढ़ गई.