शाम दफ्तर से छूट कर समीर संध्या के साथ रेस्तरां में चाय पी रहा था. तभी उस का मोबाइल बजा. उस ने मुंह बिगाड़ कर फोन उठाया, ‘‘बोल क्या है? अभी दफ्तर में हूं. काम है. 1 घंटा और लगेगा,’’ उस ने अनमने भाव से बीवी जलपा को उत्तर दिया.

‘‘कौन पत्नी?’’ संध्या ने हंस कर पूछा.

‘‘ये आजकल की बीवियां होती ही ऐसी हैं. जरा सी देर क्या हुई फोन करने लगती हैं. तुम अच्छी हो जो शादी नहीं हुई वरना तुम्हारा

पति तुम्हें भी देरी होने पर फोन कर के डिस्टर्ब करता रहता.’’

‘‘हरगिज नहीं,’’ संध्या ने तपाक से उत्तर दिया, ‘‘मर्द ऐसे शक्की नहीं होते जितनी औरतें होती हैं.’’

‘‘बिलकुल सही कहा तुम ने,’’ समीर ने सहमति जताई, ‘‘जलपा को देखो न. जरा सी देर क्या होती है, फोन करने लगती है और घर पहुंचने पर दफ्तर में क्याक्या किया, किस के साथ घूमे, क्या बात हुई वगैरहवगैरह सवालों की बौछार कर देती है.’’

‘‘क्या आप ने उसे मेरे बारे में बताया है?’’ संध्या ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम्हें क्या लगता है?’’ समीर ने हंस कर उलटा पूछा, ‘‘तुम्हारा जिक्र कर के उस के शक्कीपन को मुझे और बिलकुल नहीं बढ़ाना है.’’

‘‘आप मर्द हैं न इसलिए,’’ संध्या ने कुछ नाराजगी जताई, ‘‘सभी मर्द ऐसे ही होते हैं. खुद बीवी से छिपा कर अकेलेअकेले कुंआरी लड़कियों से मौजमस्ती करते हैं और बीवी अगर पूछताछ करे तो उसे शक्की कहते हैं.’’

‘‘तुम जलपा का पक्ष ले रही हो,’’ समीर हंस पड़ा, ‘‘लड़की जो ठहरी,’’ फिर उस ने पूछा, ‘‘तो क्या तुम्हें हमारी दोस्ती पसंद नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हारी दोस्त जरूर हूं पर प्रेमिका नहीं,’’ संध्या ने भी व्यंग्य किया और फिर दोनों बेतहाशा हंस पड़े.

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