आज वैसे भी मेरा मिजाज जरा उखड़ाउखड़ा था और जब मृदुला ने फोन पर बताया कि इस बार वह अपनी शादी की सालगिरह गोवा में सैलिब्रेट करेगी, तब तो मेरा मन और छोटा हो गया. लगा एक मैं हूं... बस इतना ही तो कहा था किशोर से कि ‘केसरी’ फिल्म देखने चलते हैं, क्योंकि मुझे अक्षय कुमार की फिल्में बहुत पसंद आती हैं. तब कहने लगे कि फालतू काम के लिए मेरे पास समय नहीं है. औफिस जाना पड़ेगा, क्लोजिंग चल रही है. और इधर देखो, छुट्टी ले कर राजन अपनी पत्नी को गोवा घुमाने ले जा रहे हैं. ईर्ष्या नहीं हो रही है.
बहन है वह मेरी, तो ईर्ष्या क्यों होगी? मगर मेरे हिस्से में यह सुख क्यों नहीं है? यह सोच कर मैं उदास हो गई, क्योंकि मैं भी तो उसी कोख से पैदा हुई थी, जिस से मृदुला. बस 1 मिनट की ही तो बड़ीछोटी हैं हम दोनों, फिर सुख में इतना अंतर क्यों?
‘‘क्या हुआ, कहां खो गई मंजरी?’’ जब मृदुला ने पूछा, तो मुझे ध्यान आया कि वह फोन पर ही है, ‘‘गोवा से क्या लाऊं तुम्हारे लिए बता? हां, वहां काजू बहुत अच्छे मिलते हैं. वही ले आऊंगी.’’
‘‘अरे, कुछ नहीं, बस तू घूम के आ अच्छी तरह... काजू तो यहां भी मिल जाते हैं. वहां से ढो कर क्यों लाएगी?’’ मैं ने कहा, पर वह जिद पर अड़ गई कि नहीं, मैं बताऊं कि मुझे क्या चाहिए.
‘‘अच्छा ठीक है, जो तुझे अच्छा लगे लेती आना,’’ कह कर मैं ने काम का बहाना बना कर फोन रख दिया, नहीं तो वह और न जाने क्याक्या बोल कर मेरा दिमाग खराब करती.