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उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

देव ने वहीं बिष्टुपुर के केएमपीएस स्कूल से पढ़ाई की थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई उस ने झारखंड की राजधानी रांची के बिलकुल निकट बीआईटी मेसरा से की थी. उसी कालेज में कैंपस से ही टाटा स्टील में उसे नौकरी मिल गई थी. वैसे उस के पास और भी औफर थे, पर बचपन से इस औद्योगिक नगर में रहा था. यहां की साफसुथरी कालोनी, दलमा की पहाड़ी, स्वर्णरेखा नदी और जुबली पार्क से उसे बहुत लगाव था और सर्वोपरी मातापिता का सामीप्य.

खरकाई नदी के पार आदित्यपुर में उस के पापा का बड़ा सा था. पर सोनारी की कालोनी में कंपनी ने देव को एक औफिसर्स फ्लैट दे रखा था. आदित्यपुर की तुलना में यह प्लांट के काफी निकट था और उस की शिफ्ट ड्यूटी भी होती थी. महीने में कम से कम 1 सप्ताह तो नाइट शिफ्ट करनी ही पड़ती थी, इसलिए वह इसी फ्लैट में रहता था. बाद में उस के पापामम्मी भी साथ में रहने लगे थे. पापा की दुकान बिष्टुपुर में थी जो यहां से समीप ही था. आदित्यपुर वाले मकान के एक हिस्से को उन्होंने किराए पर दे दिया था. इसी बीच टाटा स्टील का आधुनिकीकरण प्रोजैक्ट आया था. जापान की निप्पन स्टील की तकनीकी सहायता से टाटा कंपनी अपनी नई कोल्ड रोलिंग मिल और कंटिन्युअस कास्टिंग शौप के निर्माण में लगी थी.

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