सोनल का मन नितिन की हरकतें देख कर छटपटा रहा था. वह बच्चों को देखना चाहती थी. वह बहुत कोशिश
कर रही थी, क्योंकि उसे पता था कि उस के बाद यह चालाक इंसान बच्चों पर ध्यान नहीं देगा. पर कुदरत को
कुछ और ही मंजूर था, सोनल कोरोना के आगे जिंदगी की जंग हार गई थी.
नितिन जब सोनल का अंतिम संस्कार कर के घर पहुंचा तो श्रेया और आर्यन का विलाप देख कर पहली बार
उस का दिल भी भावुक हो उठा था. वह भी बच्चों को गले लगा कर फफकफफक कर रो पड़ा. पर नितिन को पता था कि सोनल इस घर की गृहिणी ही नहीं, बल्कि अन्नदाता भी थी.
बैंक में बस ₹10 हजार शेष थे. सोनल के जाने के बाद एक बंधी हुई इनकम का सोर्स बंद हो गया था. नितिन की आदतें इतनी खराब थीं कि उस के घर वाले और दोस्त उस की मदद करने को तैयार नहीं थे. ऐसे में ललिता के अलावा नितिन को कोई नजर नहीं आ रहा था.
सब मुसीबतों के बाद भी बस एक अच्छी बात यह थी कि यह घर नितिन और सोनल ने बहुत पहले बनवा लिया था. अब नितिन ने तिकड़म लगाया और ललिता को अपने घर पेइंगगैस्ट की तरह रहने को बोला. ललिता की हिचकिचाहट देख कर नितिन बोला,"मेरे बच्चों की खातिर आ जाओ ललिता, वे सोनल को बहुत मिस करते हैं. तुम जितना किराया देती हो, उस से आधा दे देना, मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है."
ललिता के आंखों पर तो जैसे पट्टी बंधी हुई थी. वह अपना सामान ले कर नितिन के घर आ गई थी. दोनों बच्चे ललिता को देख कर अचकचा गए मगर कुछ बोल नहीं पाए. एक रूम में ललिता, दूसरे में बच्चे और ड्राइंगरूम में नितिन रहता था.
ललिता ने धीरेधीरे पूरे घर का काम अपने जिम्मे ले लिया था. नितिन रातदिन ललिता की तारीफों में कसीदे
पढ़ता था. ललिता को लगने लगा था कि उस से ज्यादा सुंदर शायद इस दुनिया में कोई नहीं है. ललिता
आखिर एक औरत थी और वह भी निपट अकेली, उस का दिल भी पिघल ही गया. ललिता और नितिन की शादी नहीं हुई थी पर वे दोनों अब पतिपत्नी की तरह ही रहने लगे थे.
ललिता का पूरा वेतन अब नितिन की जेब में जाता था. श्रेया और आर्यन अपने पापा और ललिता की चुहलबाजी देख कर अंदर ही अंदर चिढ़ते रहते थे. एक दिन तो हद हो गई जब नितिन और ललिता बेशर्मी की सारी सीमा लांघते हुए बच्चों के सामने ही कमरे में बंद हो गए.