स्टैसी का घर काफी बड़ा था, सो उस ने एक कमरे में अमरनाथ के रहने का प्रबंध कर दिया था. अमरनाथ का मन अपने बच्चों की तरफ से न केवल उदास और दुखी हो चुका था बल्कि एक प्रकार से पूरी तरह से टूट भी गया था. एक दिन जब अमरनाथ ने स्टैसी से भारत जाने की बात कही तो उस ने भी हवाई जहाज के टिकट का खर्चा तथा अन्य खर्चों की बात उन के सामने रख दी.
अमेरिका आ कर यों भारत लौट जाना आसान नहीं था. स्टैसी खुद भी एक रिटायर महिला थी. किसी प्रकार सोशल सिक्यूरिटी के द्वारा मिलने वाली आर्थिक सहायता से अपने जीवन के दिन काट रही थी. उस ने एकदम अमरनाथ का दिल भी नहीं तोड़ा. भारत वापस जाने के लिए एक सुझाव उन के सामने रखा कि वह कहीं कोई छोटामोटा काम केवल हफ्ते में 2 या 3 दिन और वह भी 2 से 4 घंटों तक कर लिया करें. फिर इस प्रकार जो भी पैसा उन्हें मिलेगा उसे वह अपने भारत लौटने के लिए जमा करते रहें. स्टैसी का सुझाव अमरनाथ की समझ में आ गया और इस नई चुनौती के लिए उन्होंने सहमति दे दी.
स्टैसी की कोशिश से उन को एक स्टोर में काम मिल गया, जहां पसंद न आया हुआ सामान वापस करने वालों के सामान पर पहचान का एक स्टिकर लगाने जैसा हलका सा काम करना था. इस प्रकार से अमरनाथ अपनी मेहनत से जब चार पैसे खुद कमाने लगे तो उन के अंदर जीने और परेशानियों से लड़ने का साहस भी जाग गया. उन्होंने अपने काम के केवल उतने घंटे ही बढ़ाए जिस के अंतर्गत वह मेडिकल बीमा की सुविधा कम मासिक प्रीमियम पर प्राप्त कर लें. इस प्रकार से अब अमरनाथ के जीवन के दिन सहज ही व्यतीत होने लगे थे.