प्रकृति ने फूलों के साथ कांटे उगा कर हम स्त्रियों को पूरी तरह से आगाह करने का प्रयास किया है. अब हम ही नासमझ बने रहें तो फिर दोष किसी और को क्यों? हमें अपने कांटों का इस्तेमाल अपने बचाव में अवश्य ही करना चाहिए. वैष्णवी का अवचेतन मष्तिष्क इन दिनों बहुत गहराई से सोचनेविचारने लगा था. उस ने भी अपने कांटों का इस्तेमाल करने का फैसला कर लिया अपने प्रोफैसर के खिलाफ.
‘सर, मेरी थीसिस कंपलीट हो गई, मेरा वायवा करवा दीजिए ताकि मुझे डिग्री मिल जाए,’ एक दिन वैष्णवी ने अपने गाइड से आग्रह किया.
‘डिग्री के लिए केवल थीसिस और वायवा ही काफी नहीं होता, कुछ दूसरी फौर्मेलिटीज भी होती हैं,’ प्रोफैसर कुटिलता से मुसकराया.
वैष्णवी उस का मतलब बखूबी समझ रही थी. ‘हो जाएगा सर. मैं तो नई स्कौलर हूं, आप तो बरसों से पीएचडी करवा रहे हैं. आप इस लाइन के नियम मुझ से बेहतर जानते हैं. आप जैसा कहेंगे, वैसा हो जाएगा.’ वैष्णवी ने उन्हें आश्वासन दिया तो प्रोफैसर की बांछें खिल गईं. वैष्णवी को लगा मानो उन के मुंह से लार टपकने ही वाली थी जिसे उन्होंने बहुत सतर्कता से रूमाल में लपेट लिया था.
वैष्णवी के फाइनल वायवा का दिन और समय निश्चित हो गया. कुल 3 लोग पैनल में शामिल हो रहे थे. 2 बाहर से तथा 1 स्वयं उस के गाइड प्रोफैसर थे. अलिखित नियमों के अनुसार, सभी के रहनेखाने और आनेजाने की व्यवस्था वैष्णवी को ही करनी थी. जाते समय 2 लिफाफे भी परीक्षकों को थमाने थे. वैष्णवी के गाइड ने अपना मेहनताना बाद के लिए रिजर्व रख लिया.