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अभी उस ने अपनी बात पूरी नहीं की थी कि वह अचानक उठ खड़ी हुई, जैसा वह शुरू के दिनों में करती थी और कहा, ‘कुछ जरूरी काम याद आ गया है. अखिल, माफ करना मुझे जाना होगा,’ और अपना कार्ड मेरी ओर बढ़ाते हुए फोन करने के लिए कह कर चली गई.

अनिता से मैं सब से पहले नम्रता के घर पर मिला था. वह पिलानी से नई नई मुंबई आई थी. गोरीचिट्टी, छरहरी और बड़ीबड़ी काली आंखें. वैस्टर्न ड्रैस में, विशेषकर जींस और टौप में वह बहुत स्मार्ट लगती थी.

उस दिन जब मैं पहली बार उस से मिला तो अपलक अपने को मुझे देखते हुए उस ने कहा था, ‘क्या देख रहे हो? बहुत सुंदर लगती हूं?’

मैं ने हंसते हुए कहा था ‘हां, बहुत सुंदर लग रही हो. रंभा से भी अधिक सुंदर.’

‘झूठ.’

‘नहीं, यह सच है.’

और उस के बाद 1-2 बार मिलने पर मन में उस के पति प्रेम का भाव अंकुरित हो उठा. वह अस्वाभाविक नहीं था. वह सुंदर तो थी ही, पढ़ीलिखी भी थी. पिलानी से ग्रैजुएट थी और एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी.

उस दिन घर आई तो मैं ने कहा, ‘चलो, आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं. वहीं कहीं खाना खा लेंगे और तुम्हें घर भी छोड़ दूंगा.’

‘ठीक है, पर हम पहले लौंग ड्राइव पर जाएंगे और उस के बाद तुम जहां चाहो मुझे ले चल सकते हो.’

उस के बाद हम पहले लौंग ड्राइव पर गए. रास्ते में 1-2 जगह रुके. और बाद में बांद्रा के बैंड स्टैंड पर आ गए. वहां बहुत देर तक इधरउधर घूमते रहे. वह दिन रविवार था. बैंड वाला कोई मराठी धुन बजा रहा था.

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