राकेश और शिवानी के निरंतर बिगड़ रहे संबंधों में उन के अहं का टकराव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था. कोई भी पहले झक कर आपस में मिलने की समझदारी नहीं दिखा रहा था.
राकेश और उस के मातापिता मोहित से तब मिल आते जब शिवानी और उस की सहेली औफिस में होती. शिवानी से मिल कर सुलह की बातें करने को उन में से कोई राजी न था.
‘‘शिवानी बिना पूछे घर से आई थी. वह जब चाहे लौट सकती है, लेकिन वैसा करने के लिए हम उस के सामने हाथ नहीं जोड़ेंगे,’’ उन तीनों की ऐसी जिद के चलते जिद्दी शिवानी की ससुराल लौटने की संभावना बहुत कम होती गई.
शिवानी ने एक फ्लैट का इंतजाम कर लिया.
कमर्शियल अपार्टमैंट जो एक सोसायटी में थी. करीब 2 महीने बाद मोहित का जन्मदिन आया. बर्थडे वह मायके में मनाएगी यह तय हुआ. इस अवसर पर राकेश आएगा, इस बात की शिवानी को पूरी उम्मीद थी. उस ने अच्छी पार्टी का इंतजाम करने के लिए अपनी मां को क्व5 हजार दिए.
‘आज शाम किसी न किसी तरह से मैं राकेश के पास लौटने की सूरत जरूर पैदा कर लूंगी,’ ऐसा निश्चिय शिवानी ने मन ही मन कर लिया.
जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने को शिवानी जल्दी औफिस से निकलने ही वाली थी जब उस के पास उस की मां का फोन आया, ‘‘शिवानी, हम सब तेरी ससुराल में मोहित का जन्मदिन मनाने को इकट्ठे हुए हैं. तू भी यही आ जा.’’
मां के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर शिवानी को गहरा धक्का लगा. बोली, ‘‘मां, पार्टी हमारे घर में होनी थी. मोहित को तुम वहां क्यों ले गई हो?’’ क्रोध की अधिकता के कारण शिवानी थरथर कांप रही थी.