लेखक- डा. मनोज श्रीवास्तव
अब तक आप ने पढ़ा
कि किस तरह जुगुनी ने विवाह के बाद अपनी ससुराल में कलह के बीज बोने शुरू कर दिए. भाई व मां के भड़काने पर जुगुनी ने पति तेजेंद्र को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया. जुगुनी के इस साजिशाने रवैए ने आगे क्या गुल खिलाया,
जानने के लिए पढि़ए कहानी का आखिरी भाग.
इधर कोई 3 वर्षों तक जुगुनी गर्भवती नहीं हुई तो मायके वालों को चिंता हो गई कि कहीं तेजेंद्र नामर्द या नपुंसक तो नहीं है. अम्मा के सिखाने पर जुगुनी ने पड़ोस में ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया कि कमी तेजेंद्र में है.
अम्मा मुंबई आई तो उस ने जुगुनी की आंखों में झांक कर देखा, ‘‘बिटिया, कोई खास बात है क्या?’’ वह आंखें नचाते हुए बोल पड़ी, ‘‘अम्मा, मुझे तो लगता है कि तेजेंद्र का अपने ही औफिस में किसी लड़की के साथ कोई चक्करवक्कर चल रहा है. वरना शादी के 3 वर्षों बाद भी...’’ पर, सचाई यह थी कि तेजेंद्र बड़ी सावधानी बरतता था और कुछ वर्षों तक बालबच्चों की जिम्मेदारियों से दूर रहना चाहता था.
एक दिन तेजेंद्र के औफिस जाते ही अम्मा जुगुनी को खींचती हुई एक मौलवी के पास ले गई. मौलवी ने अम्मा और जुगुनी की सारी समस्याएं सुनने के बाद उन के शक पर सच की मुहर लगा दी, ‘‘आप की बिटिया के पांव इसलिए भारी नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि उस के शौहर के किसी के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं और वह जल्दी ही आप की बिटिया को छोड़ कर उस से निकाह करने जा रहा है. पर, उस बदचलन औरत से इस के शौहर का छुटकारा दिलाने का तिलिस्मी नुसखा मेरे पास है. कल तुम दोनों मुझ से पीर बाबा के मजार पर मिलना.’’