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रचना की बातें सुन लतिका के मुख पर संदेह की कालिमा छाने लगी. आहत, विस्मित दृष्टि से उस ने अपनी मां को देखा तो रचना की हिम्मत और बढ़ गई. बोलीं, ‘‘म्यूचुअल डिवोर्स में अधिक समय बरबाद नहीं होता है. जितने दिन तुम्हारी शादी नहीं चली, उस से जल्दी तुम्हारा तलाक हो जाएगा. सोचती हूं कैसे तुम ने मोहित को इतनी लंबे कोर्टशिप में बरदाश्त किया. चलो, तुम ने अपनी लाइफ का निर्णय ले लिया. अब मुझे भी एक पार्टी में जाना है. सी यू लेटर,’’ कह रचना अपना बैग उठा घर से बाहर निकल गईं.

मां का इस स्थिति में यों छोड़ कर पार्टी में चले जाना रचना को बहुत खला. क्या उस की मां उस की मानसिक स्थिति नहीं समझ सकतीं या उन के लिए अपनी बेटी से ज्यादा जरूरी उन की पार्टियां हैं? अचानक उसे वह दिन याद हो आया जब विवाह की रस्में निभाने के कारण थकीमांदी लतिका के सिर में शादी के दूसरे ही दिन दर्द उठा था और उस की सास ने मुंहदिखाई की रस्म अगले दिन के लिए टाल दी थी, जबकि कई औरतें घर में आ भी चुकी थीं.

‘‘हमारी लतिका के सिर में दर्द है. आज प्लीज माफी चाहते हैं. चायनाश्ता लीजिए पर लतिका से मुलाकात कल ही हो पाएगी,’’ लतिका की सास ने कहा था और फिर लतिका का पूरा ध्यान रखा था. पर उस की अपनी मां ने आज उसे हृदयपीड़ा के इस समय अकेला छोड़ पार्टी में जाना उचित समझा?

अगले दिन रचना को फिर घर में न पा कर लतिका ने उन्हें फोन किया. रचना ने फोन का कोई उत्तर नहीं दिया. कुछ देर बाद उन का मैसेज आया कि इस हफ्ते तुम्हारे पापा काम के सिलसिले में दुबई गए हैं. अत: मैं आज तुम्हारे मामा के घर आई हुई हूं. 2-4 दिनों में लौट आऊंगी.’ पढ़ कर लतिका अवाक रह गई. उस की मां उसे घर में अकेला छोड़ मामा के घर चली गईं और वह भी अकारण. उस ने भी प्रतिउत्तर में मैसेज भेजा.

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