‘‘जरादेखना मेरे बाल ठीक हैं... ठीक लग रही हूं न मैं?’’ मैं ने नजरें उठा कर देखा. मेरी बूआ की लड़की पूछ रही थी.
‘‘किस तरफ से ठीक हैं, पूछ रही हो? मेरी तरफ से कुछ भी ठीक नहीं है. रूखेरूखे, उलझे से हैं... कटे भी इस तरह हैं मानों चुहिया कुतर गई हो...कंघी किए कितने दिन हो गए हैं?’’‘‘क्या बात करते हो?...अभीअभी क्व500 खर्च कर सैट करा कर आ रही हूं.’’
‘‘अच्छा, तो फिर खुद ही देख लो न... मेरी समझ से तो बाहर है तुम्हारा क्व500 खर्चना,’’ मैं हैरान रह गया था.
वह खीज गई, ‘‘तुम कैसे लड़के हो अजय? तुम्हें यह भी पता नहीं?’’
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‘‘तुम मुझ से पूछती ही क्यों हो मनु? कल तुम अपनी फटी ड्रैस दिखा कर पूछ रही थी कैसी है... क्या इतने बुरे दिन आ गए हैं आप लोगों के कि तन का कपड़ा भी साबूत नहीं रहा? मैं कुछ कहता हूं तो कहती हो मैं कैसा लड़का हूं. कैसा हूं मैं? न तुम्हारे कपड़े मेरी समझ में आते हैं और न ही तुम्हारी बातें. ऊपर से मेरा ही दिमाग घुमाने लगती हो. तुम्हें जो अच्छा लगता है करो... मुझे बिना वजह गंवार, जाहिल क्यों बनाती जा रही हो? चिथड़े पहनती हो और कहती हो फैशन है. बाल बुरी तरह उलझा रखेहैं... ऐसा है देवीजी अगर इंसानों की तरह जीना पुराना फैशन है तो मुझे बख्शो...आईना देखो... जैसा सुहाए वैसा करो,’’ यह कह कर मैं चुपचाप कमरे से बाहर आ गया.
बूआ ने दूर से देखा तो बोलीं, ‘‘फिर से झगड़ा हो गया क्या तुम दोनों में?’’