‘‘अगर यही सच हो जो आप ने अभीअभी समझाया तो यही सच है. शैली पत्थर है और मैं उस पर अपना प्यार लुटाना नहीं चाहता. मैं उस के लिए नहीं बना, भैया.
मैं यह नहीं कहता वह मुझे पसंद नहीं. वह बहुत सुंदर है, स्मार्ट है. सब है उस में लेकिन मुझ जैसा इंसान उस के लिए उचित नहीं होगा. मैं वैसा नहीं हूं जैसा उसे चाहिए. उस के लिए 2 और 2 सदा 4 ही होंगे और मैं 2 और 2 कभीकभी 5 और कभीकभी 22 भी करना चाहूंगा. शैली में कोई कमी नहीं है. मैं ही उस के योग्य नहीं हूं. मैं शैली से शादी नहीं कर सकता,’’ अनुज ने अपने मन की बात कह दी.
‘‘पिछले कितने समय से आप साथसाथ हैं?’’ हैरान रह गई थी गायत्री.
‘‘साथ नहीं हैं हम, सिर्फ एक जगह काम करते हैं. अब मुझे समझ में आ रहा है, वह लड़की शैली नहीं हो सकती जिस पर मैं आंख मूंद कर भरोसा कर सकूं. इंसान को जीवन में कोई तो पड़ाव चाहिए. शैली तो मात्र एक अंतहीन यात्रा होगी और मैं भागतेभागते अभी से थकने लगा हूं. मैं रुक कर सांस लेना चाहता हूं, भैया,’’ अपना मन खोल दिया था अनुज ने गायत्री के सामने. पूरापूरा न सही, आधाअधूरा ही सही.
‘‘शैली जानती है यह सब?’’ गायत्री ने पूछा.
‘‘वह पत्थर है. मैं ने अभी बताया न. उसे मेरी पीड़ा पर दर्द नहीं होता, उसे मेरी खुशी पर चैन नहीं आता. हमारा रिश्ता सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि मेरी तनख्वाह 50 हजार है. उस के 50 हजार और मेरे 50 हजार मिल कर लाख बनेंगे और उस के बाद वह लाख कहांकहां खर्च होगा वह इतना ही सोचती है. मैं 2 पल चैन से काटना चाहूंगा, यह सुन उसे बुरा लगता है. मेरे लिए घर का सुखचैन लाखोंकरोड़ों से भी कीमती है और उस के लिए यह कोरी भावुकता. जैसे तुम सोचती हो हमारे बारे में, मेरेपिता के बारे में, भैयाभाभी के बारे में, वह तो कभी नहीं सोचेगी. वह इतनी अपनी कभी लगी ही नहीं जितनी तुम.’’